पाकिस्तान की आंतरिक राजनीति में नया मोड़ तब आया जब खैबर-पख्तूनख्वा (Khyber Pakhtunkhwa) के मुख्यमंत्री अली अमीन गंदापुर ने खुलकर प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ के नेतृत्व वाली संघीय सरकार की अफगान शरणार्थियों को जबरन देश से निकालने की नीति का विरोध किया। उन्होंने इस नीति को “दोषपूर्ण” करार देते हुए स्पष्ट किया कि उनके प्रांत में किसी भी अफगान नागरिक को बलपूर्वक निर्वासित नहीं किया जाएगा।
इस बयान से केंद्र और प्रांत के बीच टकराव और गहरा गया है। गंदापुर, जो पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (PTI) के वरिष्ठ नेता हैं, ने इस्लामाबाद में प्रेस को संबोधित करते हुए कहा, “हम किसी अफगान नागरिक पर दबाव नहीं डालेंगे। यदि कोई स्वेच्छा से वापस जाना चाहता है, तो हम उसके लिए पूरी व्यवस्था करेंगे। लेकिन जबरन निर्वासन न तो मानवीय है और न ही व्यावहारिक।”
पाकिस्तान सरकार ने हाल ही में घोषणा की थी कि 31 मार्च तक सभी अफगान नागरिक कार्ड (ACC) धारकों को देश छोड़ देना होगा, अन्यथा उन्हें बलपूर्वक हटाया जाएगा। इस नीति के तहत रावलपिंडी, इस्लामाबाद और कराची सहित कई शहरों में सैकड़ों अफगानों को हिरासत में लिया गया है। कराची में तो 150 से अधिक शरणार्थियों को पकड़ लिया गया और लगभग 16,000 लोगों की वापसी की प्रक्रिया शुरू की गई।
हालांकि इस नीति की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी आलोचना हो रही है। संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त (UNHCR) और कई मानवाधिकार संगठनों ने पाकिस्तान से समयसीमा बढ़ाने की अपील की थी, लेकिन इस्लामाबाद सरकार ने इन अपीलों को सिरे से खारिज कर दिया है।
गंदापुर का विरोध न सिर्फ संघीय नीति पर सवाल खड़ा करता है, बल्कि यह इस बात का संकेत भी है कि पाकिस्तान के भीतर शरणार्थी नीति को लेकर गंभीर राजनीतिक मतभेद उभर चुके हैं। पीएम मोदी की “पड़ोसी पहले” नीति की आलोचना करने वाले पाकिस्तान को अब खुद अंदरूनी असहमति और अंतरराष्ट्रीय दबाव का सामना करना पड़ रहा है।
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