पाकिस्तान ने अपने इतिहास में पहली बार दुर्लभ धातुओं (Rare Earths) और महत्वपूर्ण खनिजों की खेप संयुक्त राज्य अमेरिका को भेजी है। डॉन अख़बार की रिपोर्ट के अनुसार, इस खेप में कॉपर कॉन्सन्ट्रेट, एंटीमनी और नियोडाइमियम शामिल हैं। यह कदम पाकिस्तान और अमेरिकी कंपनी यूएस स्ट्रैटेजिक मेटल्स (USSM) के बीच हुए 500 मिलियन डॉलर के समझौते (MoU) का नतीजा है, जिसके तहत पाकिस्तान में ही खनिज प्रसंस्करण और रिफाइनिंग संयंत्र स्थापित किए जाएंगे।
पाकिस्तान इस समझौते को अपनी आर्थिक पुनरुद्धार की दिशा में बड़ी सफलता के रूप में प्रस्तुत कर रहा है, लेकिन व्यापक परिप्रेक्ष्य में यह कदम अमेरिका-चीन की वैश्विक संसाधन प्रतिद्वंद्विता में एक नए भू-राजनीतिक मोड़ का संकेत है। सवाल है की क्या पाकिस्तान ने वाशिंग्टन और चीन के बीच कूटनीतिक संतुलन साधा है? वाशिंगटन एक बार फिर इस समझौते के ज़रिए इस्लामाबाद के साथ अपने रणनीतिक संपर्कों को पुनर्जीवित करता दिख रहा है, जबकि पाकिस्तान अपनी पारंपरिक मित्र चीन के दबदबे के बीच अमेरिकी सहयोग पर दांव लगा रहा है।
खनिजों पर वैश्विक शक्ति संघर्ष
लिथियम, कोबाल्ट, निकेल और रेयर अर्थ जैसे खनिज आज के दौर के नए तेल बन चुके हैं। ये इलेक्ट्रिक वाहनों, रक्षा प्रणालियों, माइक्रोचिप्स और नवीकरणीय ऊर्जा तकनीकों की रीढ़ हैं। वर्तमान में दुनिया की 70% से अधिक दुर्लभ धातुओं का प्रसंस्करण चीन में होता है, जिससे उसे वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला पर गहरा नियंत्रण प्राप्त है।
अमेरिका, यूरोपीय संघ, जापान और भारत वैकल्पिक स्रोत तलाश रहे हैं। इसी दौड़ में पाकिस्तान अप्रत्याशित रूप से उभर कर सामने आया है, जिसके पास अनुमानित 6 ट्रिलियन डॉलर मूल्य के अप्रयुक्त खनिज भंडार हैं। बलूचिस्तान के तांबा-सोना क्षेत्रों से लेकर गिलगित-बाल्टिस्तान की खनिज पट्टियों तक।
अमेरिका के लिए रणनीतिक लाभ
यह समझौता केवल आर्थिक नहीं, बल्कि इंडो-पैसिफिक रणनीति का हिस्सा है। अमेरिका अब पाकिस्तान की सैन्य एजेंसी फ्रंटियर वर्क्स ऑर्गनाइजेशन (FWO) के माध्यम से निवेश कर रहा है, जिससे सुरक्षा और राज्य नियंत्रण सुनिश्चित हो सके। इस साझेदारी के ज़रिए अमेरिका को केंद्रीय एशिया तक खनिज मार्गों की पहुँच, परियोजनाओं की सुरक्षा का भरोसा, और चीन को ग्वादर के पास असहज स्थिति में लाने का अवसर तीनों एक साथ मिलते हैं।
चीन ने पाकिस्तान में चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) के तहत अरबों डॉलर का निवेश किया है। ऐसे में अमेरिका से जुड़ा यह नया खनिज समझौता और पासनी पोर्ट के संभावित उपयोग की चर्चा, जो ग्वादर से केवल 75 किमी दूर है, इसे बीजिंग कूटनीतिक खतरे के रूप में देखा रहा है।
आंतरिक आलोचना और विरोध
पाकिस्तान में विपक्षी दल इमरान खान की लोकप्रिय पार्टी PTI ने इस सौदे को गोपनीय बिकवाली करार दिया है, इसे औपनिवेशिक दौर के उन सौदों से तुलना की जा रही है, जो शुरुआत में व्यापारिक और अंत में राजनीतिक नियंत्रण में बदले। सवाल उठ रहे हैं की खनिजों से होने वाले लाभ का स्वामित्व किसके पास होगा?, क्या बलूचिस्तान जैसे संसाधन-समृद्ध प्रांतों को उचित राजस्व हिस्सा मिलेगा? और पर्यावरण और पारदर्शिता के उपाय क्या हैं?
भारत पहले से ही अमेरिका के Minerals Security Partnership (MSP) का हिस्सा है, इस घटनाक्रम को सतर्कता से देख रहा है। विशेषज्ञ मानते हैं कि यह साझेदारी भारत की खनिज कूटनीति को सीधा नुकसान नहीं पहुंचाएगी, लेकिन क्षेत्रीय संसाधन संरचना में समानांतर मार्ग बना सकती है।
पाकिस्तान का यह 500 मिलियन डॉलर का दुर्लभ खनिज सौदा उसे वैश्विक खनिज दौड़ में प्रतीकात्मक रूप से शामिल करता है, लेकिन फिलहाल वह खिलाड़ी से ज़्यादा एक प्यादा है।अमेरिका देखेगा, चीन सोचेगा और पाकिस्तान फिर से उसी चौराहे पर खड़ा है जहां अवसर और निर्भरता दोनों आमने-सामने हैं।
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