पाकिस्तान के सिंध प्रांत में इन दिनों पानी को लेकर एक बड़े आंदोलन की चिंगारी भड़क चुकी है। दक्षिण पंजाब की बंजर ज़मीनों को सींचने के लिए शुरू की गई चोलिस्तान नहर परियोजना अब खुद पाकिस्तान की राजनीति और समाज के बीच दरार बन चुकी है। खैरपुर शहर से उठी इस नाराज़गी ने पूरे सिंध को हिला दिया है—रेलवे ट्रैक जाम, बाज़ार बंद, सड़कें ठप और सत्ता की बुनियाद पर खतरे की दस्तक।
रविवार(20 अप्रैल) को खैरपुर के पास सैकड़ों प्रदर्शनकारियों ने रेलवे लाइन पर बैठकर ट्रेनों की रफ्तार रोक दी। पंजाब की ओर जाने वाली रेल सेवाएं घंटों ठप रहीं। देश के भीतर ही यह ‘जल संघर्ष’ सिंध बनाम पंजाब की शक्ल लेता दिख रहा है। न सिर्फ आम जनता, बल्कि वकील, व्यापारी और राष्ट्रवादी संगठनों से लेकर सरकार की सहयोगी पार्टी पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (PPP) तक इस योजना का खुला विरोध कर रही है।
PPP ने शहबाज शरीफ सरकार को अल्टीमेटम दे दिया है—या तो ये परियोजना रद्द करो, या सत्ता छोड़ने की तैयारी करो। उधर सिंध के बाजारों में ताले लटक रहे हैं, पेट्रोल पंप सूने हैं और सड़कों पर आक्रोशित जनता तिरंगे नहीं, नारों की मशालें लिए खड़ी है। जामशोरो, लरकाना, नवाबशाह, घोटकी जैसे तमाम शहरों में जनजीवन अस्त-व्यस्त है। कई जिलों में हाईवे और मुख्य सड़कें लगातार तीन दिनों से बंद हैं।
थारपारकर के मीठी शहर के निवासी हनीफ शमोन के मुताबिक, “यह सिंध के इतिहास का सबसे बड़ा जनांदोलन बन गया है। पूरे प्रांत में जनाक्रोश की लहर है और जनता को डर है कि सिंध की ज़मीनों को रेगिस्तान में तब्दील किया जा रहा है।”
पाकिस्तानी सरकार ‘ग्रीन पाकिस्तान इनिशिएटिव’ के तहत 3.3 अरब डॉलर की लागत से छह सिंचाई नहरें बना रही है, जिससे दक्षिण पंजाब की 12 लाख एकड़ कथित बंजर भूमि को उपजाऊ बनाया जाएगा। लेकिन सिंध को शक है कि यह विकास की आड़ में संसाधनों की लूट है, जिससे सिंधु नदी से उसका पानी कम हो जाएगा।
पानी पर नियंत्रण की यह खींचतान पाकिस्तान की एकता को सवालों के घेरे में डाल रही है। अगर यही हालात रहे, तो ये नहरें खेतों तक पानी पहुंचाने से पहले ही पाकिस्तान की राजनीति में बाढ़ ला सकती हैं।
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