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पाकिस्तानी विदेश मंत्री का भारत दौरा, क्यों अहम है बिलावल भुट्टो की यात्रा ?

पुंछ हमले के कुछ दिनों बाद बिलावल भुट्टो जरदारी की भारत यात्रा हो रही है।

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पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो जरदारी चार से पांच मई तक गोवा में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के विदेश मंत्रियों की बैठक में शामिल होंगे। इस बैठक में रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव और चीन के विदेश मंत्री क्वीन गांग भी शामिल होंगे। वहीं बिलावल भुट्टो ने कहा कि इस बैठक में भाग लेने का मेरा निर्णय एससीओ के चार्टर के प्रति पाकिस्तान की मजबूत प्रतिबद्धता को दर्शाता है। मैं मित्र देशों के अपने समकक्षों के साथ रचनात्मक चर्चा के लिए तत्पर हूं। हालांकि भुट्टो और भारतीय विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर के बीच सीधी यानी द्विपक्षीय बातचीत नहीं होगी।

बिलावल का बतौर विदेश मंत्री यह पहला भारत दौरा है। उनके इस दौरे की काफी दिनों से चर्चा हो रही थी, क्योंकि बिलावल पाकिस्तान के वो मंत्री हैं जो भारत के खिलाफ अक्सर बयान देते रहे हैं। 2014 में उन्होंने कश्मीर मुद्दे पर बोलते हुए अपनी ‘पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी’ के कार्यकर्ताओं से कहा था- मैं पूरा कश्मीर वापस लूंगा। मैं इसका एक इंच भी भारत के लिए नहीं छोड़ूंगा, क्योंकि कश्मीर सिर्फ पाकिस्तान का है। पाकिस्तान के बाकी स्टेट की तरह कश्मीर भी हमारा है। जिसके बाद बिलावल की सोशल मीडिया पर खूब खिल्ली उड़ी। सोशल मीडिया यूजर्स ने उन्हें ‘पाकिस्तानी पप्पू’ तक कह दिया।

पाकिस्तान के विदेश मंत्री का भारत आना अपने आप में काफी अहम है। 12 साल बाद पाकिस्तान का कोई विदेश मंत्री भारत आ रहा है। भुट्टो से पहले 2011 में हिना रब्बानी खार भारत दौरे पर आई थीं। उन्होंने उस समय तब के भारतीय विदेश मंत्री एसएम कृष्णा से मुलाकात की थी। बिलावल भुट्टो से पहले उनके खानदान के तीन व्यक्ति भारत आ चुके हैं।  1972 में बिलावल भुट्टो के नाना और पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भारत आए थे। साल 2002 में बिलावल की मां और पाकिस्तान की पहली महिला प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो भारत आई थीं। तो वहीं 2012 में बिलावल के पिता आसिफ अली जरदारी भारत आए थे।

वहीं पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो का इस बैठक में शामिल होना एक तरह से मजबूरी ही है। वो इसलिए क्योंकि इस समय पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था बेहद बुरी तरह से गुजर रही है। वहीं बैठक में चीन और रूस के विदेश मंत्री भी शामिल हो रहे हैं। ऐसे में उसे रूस और चीन जैसे देशों की जरूरत है।

बता दें कि SCO का गठन 15 जून 2001 हुआ था। तब चीन, रूस, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, तजाकिस्तान और उज्बेकिस्तान ने ‘शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गेनाइजेशन’ की स्थापना की। शंघाई सहयोग संगठन में 8 सदस्य देश शामिल हैं।  इनमें चीन, रूस, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, उज्बेकिस्तान, भारत और पाकिस्तान हैं. इनके अलावा चार पर्यवेक्षक देश- ईरान, अफगानिस्तान, बेलारूस और मंगोलिया हैं। SCO को इस समय दुनिया का सबसे बड़ा क्षेत्रीय संगठन माना जाता है. इस संगठन में चीन और रूस के बाद भारत सबसे बड़ा देश है।

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गोवा में SCO की बैठक, इन अहम मुद्दों पर होगी चर्चा!

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