प्रयागराज महाकुंभ में विश्व के सबसे बड़े सांस्कृतिक आयोजन के पांचवें सबसे बड़े स्नान पर्व माघी पूर्णिमा पर एक बार फिर संगम की यही महिमा विश्वव्यापी श्रद्धा की अमृतमयी बूंदों के स्पर्श की चाहत में आधी रात से ही माघी पूर्णिमा की पावन डुबकी के लिए आस्था की डुबकी लगाने के उमड़ पड़ा। मेला प्रशासन ने दोपहर दो बजे तक 12 किमी लंबे संगम के 42 घाटों पर 1.83 करोड़ श्रद्धालुओं के डुबकी लगाने का दावा किया।
संगम में आस्था की डुबकी लगाने की ललक में श्रद्धालुओं ने सूर्योदय का इंतजार किया न मुहूर्त का। आधी रात त्रिवेणी के सुरम्य तट पर हर कोई प्रयाग में माघी पूर्णिमा की महिमा का पुण्य बटोरने की ललक लिए डुबकी मारने लगा। खचाखच भीड़ की वजह से रेती पर न कपड़े रखने की जगह थी न ठिठकने की। उसी जन सैलाब में किसी का झोला तो किसी का कपड़ा और किसी के परिवारीजन आंखों से ओझल होते रहे।
भक्ति के अनंत सागर से निकली आस्था की दिव्य आभा ने संगम से लेकर चार हजार हेक्टेयर क्षेत्रफ्रल में बसे महाकुंभ नगर के शिविरों से निकले रास्तों पर हर तरफ अद्भुत छटा बिखेर दी। पौ फटते ही सूर्य की लालिमा छटा की किरणें संगम की लहरों पर उतर कर हर तन-मन में शक्ति और उल्लास का संचार करने लगीं। पुण्य की डुबकी लगाने के साथ ही उन्हीं लहरों पर लोक मंगल के गीत गाए जाते रहे।
मनाही के बावजूद संगम पर सौभाग्य के दीप भी जलते रहे और दुग्धाभिषेक भी होता रहा। तिलक-त्रिपुंड लगाने वाले पुरोहितों के चेहरे की मुस्कान देखते बन रही थी।अलग-अलग भाषा, पहनावा और संस्कृतियों के रंग आपस में इस तरह उल्लसित होकर मिल रहे थे, जैसे वर्षों की चाह पूरी हो रही हो।
वर्षों बाद महाकुंभ में माघी पूर्णिमा पर कुंभ संक्रांति लगने की वजह से झूंसी से लेकर फाफामऊ, नैनी तक के रास्तों पर जन सैलाब उमड़ता रहा। संगम पर पुण्य रूपी कमाई को अर्जित करने के लिए ऐसा ही समागम महाकुंभ में हर तरफ नजर आया।
एक तरफ डुबकी का उल्लास और दूसरी ओर कल्पवास के मास पर्यंत अनुष्ठानों की पूर्णाहुति ने महाकुंभ में भक्ति के रंग को और गाढ़ा कर दिया। शिविरों में रात भर अखंड रामायण पाठ और कीर्तन शुरू हो गए थे। कथा और सत्संग रूपी ज्ञान का प्रवाह गंगा-यमुना के भक्ति और प्रेम में समाहित होकर अलग त्रिवेणी रचता रहा।
माघी पूर्णिमा स्नान पर्व पर सुबह ही हेलिकॉप्टर से श्रद्धालुओं, संतों और कल्पवासियों पर पुष्पवर्षा आरंभ हो गई। अफसरों ने संगम समेत गंगा के सभी स्नान घाटों पर शाम तक 42 कुंतल गेंदा, गुलाब की पंखुड़ियों की वर्षा की। इस दौरान पुष्पवर्षा से पुलकित होकर श्रद्धालु गगनभेदी जयकारे भी लगाते रहे।
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