“प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तपस्वी हैं, अब हमारा कर्तव्य है…”; मोहन भागवत का बयान !

पूरे देश में आज अयोध्या जैसा ही माहौल है, जो लोग आज यहां नहीं आ सके वे धन्य हैं। मोहन भागवत ने यह भी कहा है कि देश के छोटे मंदिरों में भी उत्सव चल रहा है| आज आयोजित प्राणप्रतिष्ठा समारोह में आने से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 11 दिनों का उपवास रखा| वह और मैं पुराने परिचित हैं| प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तपस्वी हैं| वे अकेले ही तपस्या कर रहे हैं, हम क्या करें? रामलला अयोध्या आये लेकिन बाहर क्यों गये?

“प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तपस्वी हैं, अब हमारा कर्तव्य है…”; मोहन भागवत का बयान !

“Prime Minister Narendra Modi is an ascetic, now it is our duty…”; Statement of Mohan Bhagwat!

आज की ख़ुशी शब्दों से परे है| आज अयोध्या में रामलला की मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा से भारत का स्वाभिमान लौट आया है। सरसंघचालक मोहन भागवत ने आज कहा है कि इसमें कोई संदेह नहीं कि यह महोत्सव पूरी दुनिया के लिए राहत देने वाला होगा| पूरे देश में आज अयोध्या जैसा ही माहौल है, जो लोग आज यहां नहीं आ सके वे धन्य हैं। मोहन भागवत ने यह भी कहा है कि देश के छोटे मंदिरों में भी उत्सव चल रहा है| आज आयोजित प्राणप्रतिष्ठा समारोह में आने से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 11 दिनों का उपवास रखा| वह और मैं पुराने परिचित हैं| प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तपस्वी हैं| वे अकेले ही तपस्या कर रहे हैं, हम क्या करें? रामलला अयोध्या आये लेकिन बाहर क्यों गये?

अत: अयोध्या में संघर्ष हो गया। संघर्ष हुआ और इसके कारण राम को वनवास भुगतना पड़ा। 14 वर्ष बाद जब वे लौटे तो विश्व कलह समाप्त हो गया। यह उन लोगों के बलिदान और कड़ी मेहनत के लिए एक बड़ी श्रद्धांजलि है जिनके प्रयासों से हम आज यह स्वर्णिम दिन देख रहे हैं। उन्होंने ये बयान कारसेवकों को लेकर दिया है|

हमारे इतिहास की शक्ति महान है|जैसा कि प्रधानमंत्री ने प्रण किया था, अब जिम्मेदारी भी हमारी है।’ सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा है कि राम राज्य आने के लिए हमें भी प्रयास करना होगा| हमें रामराज्य के सामान्य नागरिक की तरह रहना चाहिए।’ हमारे भारत का जश्न मनाने वाले हमारे भारत के नागरिक हैं। हमें अपने सभी वाद-विवाद, झगड़े-झगड़े को कर्त्तव्य समझकर त्यागना होगा।राम युग के आम नागरिक ईमानदार थे, उनमें कोई अहंकार नहीं था। इसके अलावा धर्म के चार मूल्यों का पालन करने वाले भी थे।

यह सत्य, करुणा, सुचिता और तप के चार मूल्यों द्वारा निर्देशित था। ऐसा करना हमारा कर्तव्य है| हमें एक दूसरे के साथ समन्वय बनाना होगा|’ एक दूसरे के साथ समन्वय बनाना जरूरी है| करुणा का अर्थ है सेवा और परोपकार। जहां दर्द दिखे वहां जाकर सेवा करो।दोनों हाथों से कमाना और समाज को वापस देना न भूलें। अथाना का अर्थ है पवित्रता, इसके लिए धैर्य की आवश्यकता होती है। आपको अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण रखना चाहिए|

मोहन भागवत ने दूसरों की राय का सम्मान करना सीखने की भी सलाह दी है| अपना अनुशासन कभी न खोएं, समुदाय, परिवार, सामाजिक अनुशासन बहुत महत्वपूर्ण है। हमें अपने देश को विश्व गुरु बनाने का संकल्प लेना होगा। मोहन भागवत ने यह भी कहा है कि हम उन लोगों के काम को आगे बढ़ाना चाहते हैं, जिन्होंने 500 साल तक राम मंदिर के लिए लड़ाई लड़ी|

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