रंगभरी उत्सव की इस श्रृंखला में रविवार को मथुरा स्थित श्री कृष्ण की जन्मस्थली से विशेष रूप से बाबा विश्वनाथ को अबीर और उपहार सामग्री भेंट की गई। मथुरा से भेजे गए इन उपहारों में रंग-बिरंगे अबीर और अन्य सामग्रियां शामिल थीं, जिन्हें बाबा विश्वनाथ और मां गौरा की प्रतिमाओं पर अर्पित किया गया।
इस दिन की विशेष परंपरा के अनुसार, श्रद्धालुओं ने बाबा विश्वनाथ और मां गौरा की प्रतिमाओं पर हल्दी लगाने की प्रथा का निर्वहन भी किया। श्रद्धालु अबीर, गुलाल और पुष्पों की वर्षा करते हुए इस धार्मिक क्रियावली में शामिल हुए। बड़ी संख्या में लोग इस उत्सव में शिरकत करने काशी विश्वनाथ मंदिर पहुंचे और भक्ति भाव से इस पारंपरिक उत्सव में भाग लिया।
यह तीन दिवसीय उत्सव न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह काशी की सांस्कृतिक धरोहर और परंपराओं को संजीवनी देने वाला भी था। मंदिर प्रशासन की ओर से भी इस उत्सव को देखते हुए भक्तों के लिए विशेष व्यवस्था की गई थी।
उल्लेखनीय है कि रंगभरी एकादशी के मौके पर काशी के लोग होली से पहले ही बाबा और माता से अनुमति लेकर होली खेलना शुरू कर देते हैं। काशी के कोने-कोने में ‘नम: पार्वती पतये हर-हर महादेव’ गूंजता रहता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार रंगभरी एकादशी के दिन गौना बारात का आगमन होता है। बाबा विश्वनाथ माता गौरा को अपने साथ घर ले जाने के गण के साथ पहुंचते हैं, जिसकी शुरुआत हल्दी लगाने के साथ शुरू होती है।
माना जाता है कि रंगभरी एकादशी के दिन बाबा और माता पार्वती को रंग चढ़ाकर भक्त उनसे होली खेलने की अनुमति भी मांगते हैं। रंगभरी एकादशी के दिन काशी में बाबा विश्वनाथ माता पार्वती का भव्य डोला निकाला जाता है। इस दिन गली का कोना-कोना रंगों में रंगा नजर आता है।
मान्यताओं के अनुसार रंगभरी एकादशी के दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करने का भी विधान है। इस दिन बाबा और गौरा माता की पूजा करने से मनचाहे जीवनसाथी की कामना पूरी होती है और जीवन की कई परेशानियां दूर हो जाती है। रंगभरी एकादशी के दिन स्वयं भगवान शिव और माता पार्वती काशी में आते हैं। इस दिन भगवान शिव, माता पार्वती को उनके ससुराल का भ्रमण भी कराते हैं।
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