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Saturday, December 6, 2025
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रिपोर्ट : जीएसटी सुधारों से 2026 में भारत की जीडीपी 6.5% बढ़ेगी! 

क्रेडिट रेटिंग एजेंसी आईसीआरए ने भी रिपोर्ट में कहा है कि उद्योगों की सक्रिय रणनीतियां, ट्रेड रिरूटिंग और भौगोलिक विविधीकरण को टैरिफ के झटके से उबरने में मदद कर सकते हैं।

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जीएसटी सुधारों के कारण वित्त वर्ष 2026 में भारत की अर्थव्यवस्था 6.5 प्रतिशत की दर से तेजी से बढ़ेगी, जो पिछले अनुमान 6 प्रतिशत से अधिक है। बुधवार को जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, ये सुधार अमेरिका के भारी आयात शुल्कों के प्रभाव को कम करेंगे।

क्रेडिट रेटिंग एजेंसी आईसीआरए ने भी रिपोर्ट में कहा है कि उद्योगों की सक्रिय रणनीतियां, ट्रेड रिरूटिंग और भौगोलिक विविधीकरण भारत को टैरिफ के झटके से उबरने में मदद कर सकते हैं। हालांकि, रेटिंग एजेंसी ने कहा कि उच्च टैरिफ बोझ कई उद्योगों में सेक्टोरल लाभप्रदता और मांग पर भारी पड़ सकते हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत 140 से अधिक प्रोडक्ट कैटेगरी अमेरिका को निर्यात करता है, जिससे ऑटो कंपोनेंट्स से लेकर सी फूड तक के क्षेत्रों के लिए यह बाजार काफी महत्वपूर्ण हो जाता है।

रिपोर्ट के अनुसार, एक ओर उच्च अमेरिकी टैरिफ से वित्त वर्ष 2026 में मार्जिन और मांग पर दबाव पड़ सकता है, वहीं दूसरी ओर उद्योग जगत की प्रतिक्रियाएं और नीतिगत समर्थन तत्काल नुकसान को सीमित करने में मदद कर रहे हैं।

निर्यातक बाजारों में विविधता ला रहे हैं, उत्पादों में वैल्यू जोड़ रहे हैं और मेक्सिको, यूरोप तथा दुबई जैसे शुल्क-मुक्त भौगोलिक क्षेत्रों के माध्यम से व्यापार कर रहे हैं।

संयुक्त राज्य अमेरिका ने भारतीय आयातों पर कुल मिलाकर 50 प्रतिशत शुल्क लगाया है, जो चीन, वियतनाम, बांग्लादेश और जापान के निर्यातकों पर लागू दरों से कहीं अधिक है।

हालांकि कुछ उद्योग इस प्रभाव को कम करने में सक्षम प्रतीत होते हैं, वहीं अन्य को गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जो वित्त वर्ष 2026 तक आय पर असर डाल सकती हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है कि कई ऑटो निर्यातक बाज़ारों में विविधता लाकर, वैल्यू एडिशन बढ़ाकर और मेक्सिको तथा यूरोप जैसे शुल्क-मुक्त भौगोलिक क्षेत्रों में सहायक कंपनियों का लाभ उठाकर टैरिफ के इस प्रभाव को कम कर रहे हैं।

रिपोर्ट के अनुसार, अधिकांश कंपनियां कॉस्ट पास-थ्रू रणनीतियों और ग्राहकों के साथ जुड़ाव के कारण न्यूनतम तत्काल प्रभाव की जानकारी देती हैं।

मेटल सेक्टर में टैरिफ की वजह से मात्रा में कोई बड़ा व्यवधान नहीं देखा गया है। कंपनियों ने विशेष उत्पादों में सीमित घरेलू अमेरिकी विनिर्माण क्षमताओं की सहायता से, अमेरिकी खरीदारों को शुल्कों का पूरा पास-थ्रू करने में कामयाबी हासिल की है।

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