भारतीय क्रिकेटर मोहम्मद शमी के रमजान के दौरान रोजा न रखने के फैसले को लेकर विवाद खड़ा हो गया है। इस मुद्दे पर मुस्लिम धर्मगुरुओं के बीच मतभेद सामने आए हैं—कुछ उनकी आलोचना कर रहे हैं, तो कुछ इस्लामी सिद्धांतों के आधार पर उन्हें सही ठहरा रहे हैं।
विवाद की शुरुआत: हाल ही में सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें शमी को ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ सेमीफाइनल मैच के दौरान पानी पीते हुए देखा गया। इस पर कुछ लोगों ने उन्हें ट्रोल किया और सवाल उठाए।
धर्मगुरुओं की प्रतिक्रिया: मुस्लिम धर्मगुरु इब्राहिम चौधरी ने कहा कि इस्लाम में रोजा, नमाज, जकात और हज अनिवार्य कर्तव्य हैं। अगर कोई वयस्क मुसलमान इन्हें जानबूझकर नहीं निभाता, तो उसकी धार्मिक स्थिति पर सवाल उठ सकता है, चाहे वह मोहम्मद शमी हों या कोई और।
हालांकि, मौलाना कारी इसहाक गोरा ने शमी का समर्थन करते हुए कहा कि पेशेवर खिलाड़ियों को रोजा छोड़ने की इस्लाम में अनुमति है यदि उनके पास कोई वैध कारण हो। उन्होंने जोर देते हुए कहा, “यह मामला अल्लाह और शमी के बीच का है, किसी को भी इस पर फैसला सुनाने की जरूरत नहीं है।”
हिंदू धर्मगुरुओं का भी समर्थन: परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानंद सरस्वती ने भी शमी का बचाव करते हुए कहा कि व्यक्ति की भक्ति केवल धार्मिक अनुष्ठानों तक सीमित नहीं होती। उन्होंने कहा, “राष्ट्र के प्रति समर्पण भी भक्ति का ही एक रूप है। देश के लिए अपना योगदान देना किसी भी पूजा-पाठ से कम नहीं है।”
जहां कुछ लोग शमी की आलोचना कर रहे हैं, वहीं कई धर्मगुरु उनके फैसले का समर्थन कर रहे हैं। उनका मानना है कि खेल जैसे पेशे में व्यस्त रहने वाले लोगों के लिए इस्लाम कुछ छूट देता है, और दूसरों को इस पर निर्णय नहीं सुनाना चाहिए।
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