सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस यशवंत वर्मा की याचिका पर सुनवाई शुरू हो गई है| जस्टिस वर्मा ने अपनी याचिका में दिल्ली में उनके आधिकारिक आवास पर आग के दौरान बरामद कथित कैश मामले में इन-हाउस जांच समिति की रिपोर्ट और तत्कालीन सीजेआई संजीव खन्ना की महाभियोग सिफारिश को चुनौती दी है|
सिब्बल ने स्पष्ट किया कि जस्टिस वर्मा इन-हाउस प्रक्रिया को प्रशासनिक उपाय के रूप में स्वीकार करते हैं और CJI की प्रशासनिक शक्ति जैसे न्यायिक कार्य आवंटन रोकने को चुनौती नहीं दे रहे| उनकी आपत्ति इस प्रक्रिया के आधार पर महाभियोग शुरू करने पर है|
कपिल सिब्बल ने आगे कहा कि किसी इन-हाउस जांच प्रक्रिया के आधार पर न्यायाधीश को हटाने की कार्यवाही शुरू करना एक खतरनाक मिसाल कायम करेगा, क्योंकि न्यायाधीशों को हटाने की प्रक्रिया केवल संविधान के अनुच्छेद 124 और जजेज (इन्क्वायरी) एक्ट के तहत ही संभव है|
इस पर जस्टिस दीपांकर दत्ता ने सवाल किया कि इन-हाउस प्रक्रिया, जिसे तीन पुराने फैसलों में मान्यता दी गई है और जो जस्टिस कृष्ण अय्यर के सिद्धांतों पर आधारित है, क्या उसे पूरी तरह नजरअंदाज किया जा सकता है? और यदि अदालत सिब्बल की बात से सहमत हो, तो फिर वह क्या राहत दे सकती है?
जस्टिस दीपांकर दत्ता ने आगे कहा कि CJI कोई पोस्ट ऑफिस नहीं है| CJI की राष्ट्र के प्रति भी जिम्मेदारी बनती है| अगर CJI के पास ऐसा मटेरियल उपलब्ध है, जिनके आधार पर उन्हें जज का कदाचार लगता है तो वो निश्चित तौर पर पीएम और राष्ट्रपति को सिफारिश भेज सकते हैं|
इस मामले की शुरुआत 14 मार्च 2025 को हुई, जब जस्टिस वर्मा के दिल्ली आवास पर आग लगने के दौरान दमकल कर्मियों ने कथित तौर पर जले हुए नोट बरामद किए| इसके बाद तत्कालीन CJI संजीव खन्ना ने तीन सदस्यीय समिति गठित की, जिसमें पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश शील नागू, हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जी एस संधवालिया, और कर्नाटक हाईकोर्ट की जज अनु शिवरामन शामिल थीं|
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