साथ ही मंदिर में गंगा जलधारा भी है, जो बेहद पवित्र मानी जाती है। इस शक्तिपीठ से बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री आदि धामों की पहाड़ियां भी दिखाई देती हैं। कहा जाता है कि स्वर्ग के राज इन्द्र देव ने भी इसी स्थान पर तपस्या की थी, जिससे इस पर्वत को ‘सुरकुट’ पर्वत कहा जाता है।
सुरकंडा देवी मंदिर समुद्र तल से 9,995 फीट की ऊंचाई पर स्थित पहला शक्ति पीठ है, जो 51 शक्तिपीठों में से एक है। यह उत्तराखंड के टिहरी जिले में स्थित है। यह मंदिर देवी दुर्गा को समर्पित है और यहां देवी काली की मूर्ति स्थापित है। मान्यता है कि देवी सती का सिर यहीं गिरा था, इसलिए पहले इसका नाम सिरकंडा था, जो कालांतर में सुरकंडा देवी मंदिर के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
सुरकंडा माता शक्ति पीठ के महंत महावीर लेखवार ने बताया कि ऐसी मान्यता है कि जब राजा दक्ष ने कनखल में यज्ञ का आयोजन किया, तो उसमें सभी देवी-देवताओं को आमंत्रित किया, लेकिन भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया। राजा दक्ष की पुत्री और भगवान शिव की पत्नी सती ने शिव से यज्ञ में जाने की अनुमति मांगी।
इस सिद्धपीठ से जुड़ी एक अन्य लोक मान्यता यह भी है कि इस मंदिर की स्थापना सदियों पहले आनंदू या आनंद सिंह जड़धारी ने की थी। उस समय पहाड़ के लोग देहरादून “माल” भारी सामान पीठ पर लादे आ रहे थे कि रास्ते में उन्हें एक असहाय वृद्धा मिली, उसने कहा कि मुझे भी अपने साथ ले चलो, लेकिन कोई राजी नहीं हुआ।
मां ने कहा जड़धारी वंश मेरा मैती कहलाएगा। तब से जड़धारी लोग देवी के मैती के रूप में मंदिर का प्रबंधन व सेवा करते आ रहे हैं। पुजाल्डी गांव के लेखवार जाति के ब्राह्मण मां के पुजारी हैं। वे आदिकाल से मां की पूजा-अर्चना का कार्य करते आ रहे हैं और मालकोट के लोग देवी के मामा कहलाते हैं।
श्रद्धालु दिव्य रस्तोगी ने बताया कि श्रद्धालुओं को किसी प्रकार की कोई परेशानी न हो, इसके लिए बुजुर्गों और दिव्यांग जनों के लिए ट्राली की व्यवस्था की गई है। मान्यता है कि यहां सच्चे मन से मांगी गई हर मुराद पूरी होती है।
परिवार के सुख, शांति और अच्छे स्वास्थ्य की कामना लेकर राजस्थान बीकानेर से आए श्रद्धालु इंद्र कुमार खत्री ने बताया कि यह सती माता के 51 शक्तिपीठों में से एक है। मुंबई से आए अक्षय चकीजा ने कहा कि इस मंदिर की काफी मान्यता है। वह दूसरी बार यहां आए हैं।
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