लेफ्टिनेंट जनरल मनोज पांडे 30 अप्रैल को नए सेना प्रमुख की जिम्मेदारी संभाल लेंगे। वह भारतीय सेना के पहले ऐसे व्यक्ति हैं, जो इंजीनियर्स कॉर्प्स से आते हैं। उनका कार्यकाल दो साल से अधिक को होगा। सरकार की ओर से वरिष्ठता के आधार पर उन्हें इस पद के लिए चुना गया है।
बीते करीब दो सालों से भारत और चीन के बीच लद्दाख में तनाव की स्थिति बनी हुई है। खासतौर पर पूर्वी लद्दाख में दोनों देशों ने सेनाओं की तैनाती में इजाफा कर रखा है। दोनों देशों के बीच सैन्य तैनाती तीन बार में कम की जा चुकी है, लेकिन अब भी 50 से 60 हजार सैनिकों की तैनाती है।
गलवान, पैंगोंग और गोगरा में तनाव की स्थिति बरकरार है। दोनों देशों की सेनाओं के बीच 15 राउंड की वार्ता हो चुकी है, लेकिन अब भी मुद्दों का हल नहीं हो सका है। ऐसे में नए आर्मी चीफ के तौर पर मनोज पांडे के सामने चीन से तनाव को कम करने की चुनौती होगी।
देश के पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत सेनाओं के थिएटराइजेशन पर काम कर रहे थे, जो अब तक पूरा नहीं हुआ है। खासतौर पर भविष्य के युद्धों और तकनीकों में तेजी से हो रहे बदलाव के लिहाज से यह जरूरी है। सेना का जो प्लान है, उसके मुताबिक 4 कमांड्स का गठन होना है।
मौजूदा मॉडल के तहत दो लैंड थिएटर कमांड, एक एयर डिफेंस कमांड और एक मैरीटाइम कमांड की स्थापना होनी है। इसी महीने तीनों सेनाओं की ओर से थिएटराइजेशन पर रिपोर्ट सौंपी जा सकती है। अब उस पर सेना प्रमुख को फैसला लेना होगा। मनोज पांडे की नियुक्ति ऐसे वक्त में हो रही है, जब सरकार सेना को हथियारों के मामले में आत्मनिर्भर बनाने के लिए काम कर रही है। सरकार ने चरणबद्ध तरीके से 310 हथियारों के आयात पर रोक लगा दी गई है।
पूर्व सीडीएस दिवंगत जनरल बिपिन रावत अक्सर ढाई मोर्चे की युद्ध की बात करते थे। वे चीन को दुश्मन नंबर एक मानते थे और पाकिस्तान को दूसरे नंबर पर रखते थे। यूक्रेन जंग के चलते रूस पर काफी पाबंदियां लगी हैं और इससे भारत के आगे भी हथियारों के आयात को लेकर चुनौती पैदा हो गई है। अमेरिका ने बड़े पैमाने पर रूस पर पाबंदियां लगा दी हैं।
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