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Saturday, September 21, 2024
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महिलाओं के मस्जिद में नमाज पढ़ने पर पर्सनल लॉ को ये है एतराज….

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट से कहा, महिलाएं मस्जिदों में पढ़ सकती हैं नमाज

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पुणे की एक मुस्लिम महिला और एडवोकेट फरहा अनवर हुसैन शेख ने 2020 में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की थी। जिसमें कहा गया था कि मस्जिदों में महिलाओं की एंट्री पर लगी रोक को अवैध घोषित किया जाए। एक आम धारणा है कि मुस्लिम महिलाओं को पुरुषों की तरह मस्जिद में आकर नमाज पढ़ने पर धार्मिक आधार पर प्रतिबंध है, जबकि हकीकत में धार्मिक आधार पर महिलाओं को मस्जिद में नमाज पढ़ने से रोका नहीं गया है। हां, इतना जरूर है कि फर्ज नमाज पढ़ने के लिए जैसे पुरुषों का मस्जिद आकर नमाज पढ़ने को प्रोत्साहित किया गया है और इसे अच्छा माना गया है, वैसे ही महिलाओं की स्थिति के मुताबिक, उन्हें मस्जिद आकर नमाज पढ़ने के लिए प्रोत्साहित नहीं किया गया है, और उन्हें घर पर ही नमाज पढ़ने की छूट दी गई है।

वहीं हाल ही में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि महिलाएं चाहें तो मस्जिद में जाकर नमाज पढ़ सकती हैं। इस्लाम में महिलाओं के मस्जिदों में नमाज पढ़ने पर कोई मनाही नहीं है, बशर्ते वे पुरुष नमाजियों के बीच या उनके साथ न बैठें। अगर किसी मस्जिद कमेटी ने इसके लिए अलग जगह निर्धारित की है तो महिलाएं वहां जा सकती हैं।

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की तरफ से जारी की गई प्रेस रिलीज।

बोर्ड ने जो हलफनामा दिया है उसमें कहा है कि महिला चाहे तो मस्जिद में नमाज के लिए जाएं या न जाएं, ये तय करना उनके हाथ में है। मुस्लिम महिलाओं को 5 वक्त की नमाज या जमात में जुमे की नमाज करने की बाध्यता नहीं है। महिला नमाज घर पर पढ़े या मस्जिद में, उसे तब भी पुण्य या फल मिलेगा। लेकिन पुरुषों के लिए ऐसा नहीं है, उनके लिए मस्जिद में ही नमाज पढ़ने का नियम है।

बोर्ड ने यह भी कहा कि एक मुस्लिम महिला नमाज के लिए मस्जिद में प्रवेश करने के लिए स्वतंत्र है और यह उसका विकल्प है कि वह मस्जिद में नमाज के लिए उपलब्ध सुविधाओं का लाभ उठाने के अपने अधिकार का प्रयोग करे। बोर्ड ने कोर्ट में पेश हलफनामे में कहा कि याचिका में उठाए गए प्रश्न राज्य की कार्रवाई की पृष्ठभूमि में नहीं हैं। पूजा स्थलों में धर्म की प्रथाएं निजी हैं जो मुत्तवलिस द्वारा विनियमित होती है।

हलफनामे में यह भी कहा गया है कि एआईएमपीएलबी बगैर राज्य के हस्तक्षेप के एक विशेषज्ञ निकाय होने के नाते इस्लामी सिद्धांतों के आधार पर सलाह दे सकता है। एआईएमपीएलबी और शीर्ष अदालत एक धार्मिक स्थान की व्यवस्था के क्षेत्र में प्रवेश नहीं कर सकते हैं, जो धर्म में विश्वास करने वालों की धार्मिक प्रथाओं के लिए पूरी तरह से निजी मामला है।

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