पाकिस्तानी सेना का जहरीला बयान, दोहराई आतंकवादी हाफिज सईद की ज़ुबां

"यदि आप हमारा पानी रोकेंगे, तो हम आपकी सांसें रोक देंगे।"

पाकिस्तानी सेना का जहरीला बयान, दोहराई आतंकवादी हाफिज सईद की ज़ुबां

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पाकिस्तान की सेना एक बार फिर बेनकाब हो गई है, जब उसके शीर्ष सैन्य प्रवक्ता (DGISPR) ने भारत के खिलाफ उसी भाषा का प्रयोग किया जो अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी हाफिज सईद अकसर करता आया है। लेफ्टिनेंट जनरल अहमद शरीफ चौधरी ने सिंधु जल संधि पर भारत के निर्णय को लेकर धमकी भरे लहजे में कहा, “यदि आप हमारा पानी रोकेंगे, तो हम आपकी सांसें रोक देंगे।” यह बयान न केवल असंवेदनशील है, बल्कि लश्कर-ए-तैयबा जैसे आतंकवादी संगठन के विचारों को प्रतिबिंबित करता है।

यह बयान ऐसे समय पर आया है जब भारत ने हाल ही में 23 अप्रैल को सिंधु जल संधि के कुछ हिस्सों को निलंबित कर दिया था। यह निर्णय जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए भीषण आतंकी हमले के ठीक एक दिन बाद लिया गया था, जिसमें 26 निर्दोष नागरिकों की हत्या कर दी गई थी।

सार्वजनिक मंच से दिया गया जनरल चौधरी का बयान सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है, और इसमें उनकी भाषा हाफिज सईद के पुराने वीडियो से मेल खाती है। यही हाफिज सईद 2008 के मुंबई हमलों का मास्टरमाइंड है और भारत के खिलाफ खुलेआम जहर उगलता रहा है।

भारत सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि पाकिस्तान जब तक अपनी धरती से आतंकवाद का समर्थन, प्रशिक्षण और वित्तपोषण नहीं रोकता, तब तक सिंधु जल संधि को बहाल नहीं किया जाएगा। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा, “आतंकवाद और बातचीत एक साथ नहीं हो सकते।” उन्होंने जोर देकर कहा कि भारत केवल उन वांछित आतंकवादियों के प्रत्यर्पण पर चर्चा करेगा, जिनकी सूची पहले ही पाकिस्तान को सौंपी जा चुकी है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बयान “पानी और खून एक साथ नहीं बह सकते” को दोहराते हुए विदेश मंत्रालय ने यह भी स्पष्ट किया कि पाकिस्तान के साथ भविष्य की किसी भी बातचीत का केंद्र बिंदु केवल पाक-अधिकृत कश्मीर से उसके अवैध कब्जे की समाप्ति होगा।

भारत द्वारा 7 मई को चलाए गए “ऑपरेशन सिंदूर” में पाकिस्तान और पीओके स्थित नौ आतंकवादी ठिकानों को निशाना बनाया गया। यह कदम सीमा पार आतंकवाद के खिलाफ भारत के सख्त रुख का प्रतीक है। 1960 में विश्व बैंक की मध्यस्थता से हुई सिंधु जल संधि दोनों देशों के बीच सिंधु नदी और उसकी सहायक नदियों के जल के बंटवारे को नियंत्रित करती है। लेकिन बदलते हालात में भारत अब इस ऐतिहासिक समझौते पर पुनर्विचार की स्थिति में है।

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