अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने गूगल, माइक्रोसॉफ्ट और एप्पल जैसी अमेरिकी टेक कंपनियों से विदेशी कर्मचारियों, खासकर भारतीयों की भर्ती रोकने और अमेरिका में ही नौकरियां सृजित करने की अपील की है। वॉशिंगटन में बुधवार (6 अगस्त) को आयोजित AI समिट में ट्रंप ने कहा कि अमेरिकी कंपनियों को अब कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) जैसे तेजी से बढ़ते क्षेत्र में ‘राष्ट्रीय हितों’ को प्राथमिकता देनी चाहिए। हालांकि अभी कोई आधिकारिक नीति लागू नहीं हुई है, लेकिन इस बयान ने भारतीय पेशेवरों के लिए अनिश्चितता बढ़ा दी है।
पिछले कई दशकों से अमेरिकी टेक कंपनियों के इंजीनियरिंग हब बेंगलुरु और हैदराबाद जैसे भारतीय शहरों में मौजूद हैं, और भारतीय इंजीनियर उनकी वैश्विक सफलता की रीढ़ रहे हैं। ट्रंप का बयान इस सहयोगी ढांचे में ‘अमेरिका-फर्स्ट’ की नीति के तहत आया है। ऐसे में अगर हायरिंग बैन लागू होता है तो भारतीय इंजीनियरों के लिए अमेरिका में H-1B वीजा के जरिए नौकरी के अवसर घट सकते हैं। गूगल और माइक्रोसॉफ्ट जैसी कंपनियों के भारतीय कैंपस पर निवेश भी प्रभावित हो सकते है। ब्रुकिंग्स इंस्टीट्यूशन के अनुसार, अमेरिका के शीर्ष AI शोधकर्ताओं में आधे से अधिक विदेशी मूल के हैं, जिनमें बड़ी संख्या भारतीयों की है। यह रोक अमेरिका की इनोवेशन क्षमता को धीमा कर कर देगी, लेकिन साथ ही भारत की वैश्विक टेक इंजन की भूमिका पर भी असर डालेगी।
यह स्थिति निर्माण होगी भारत के लिए आत्मनिर्भर टेक महाशक्ति बनने का मौका देगी। अब भारत अपने विशाल इंजीनियरिंग टैलेंट को सिर्फ पश्चिमी कंपनियों के लिए कोड लिखने तक सीमित न रखकर, देश की जरूरतों के अनुरूप इनोवेशन कर सकेगा। उदाहरण के लिए, AI का इस्तेमाल कृषि में जलवायु परिवर्तन झेल रहे छोटे किसानों की पैदावार बढ़ाने में, या ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं में डॉक्टरों की कमी को पूरा करने में किया जा सकता है।
हाल ही में केंद्र सरकार ने कृषि, स्वास्थ्य और भाषा मॉडल पर केंद्रित एक नए AI मिशन की घोषणा भी की है। आधार और UPI जैसी डिजिटल पहलों ने पहले ही भारत की तकनीकी क्षमता को विश्वस्तर पर स्थापित किया है। यदि सरकार अनुसंधान केंद्रों, हार्डवेयर नवाचार और स्टार्टअप के लिए बेहतर माहौल उपलब्ध कराए, तो देश में ऐसा इकोसिस्टम बन सकता है जहां टैलेंट देश में ही रहकर विश्वस्तरीय तकनीक विकसित करे।
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हालांकि वैश्विक सहयोग ने ही तकनीकी क्षेत्र को उसका स्वर्णकाल दिया है, और अमेरिकी कंपनियां चेतावनी दे रही हैं कि विदेशी टैलेंट को सीमित करना अमेरिका की क्षमता को नुकसान पहुंचा सकता है। फिर भी, भारत के पास अब मौका है कि वह पश्चिमी मान्यता पर निर्भर रहने के बजाय अपना ‘सिलिकॉन वैली’ खुद खड़ा करे।
ट्रंप का यह बयान भारत के लिए एक चेतावनी के रुप में देखा जा रहा है। मगर अपने लोगों, अपनी समस्याओं और अपनी संभावनाओं पर भरोसा कर भारत आपदा में अवसर खोजते हुए वैश्विक नवाचार को नई परिभाषा दे सकता है।
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