कार्यक्रम में रक्षा सचिव राजेश कुमार सिंह, रक्षा लेखा महानिदेशक विश्वजीत सहाय, रक्षा सेवा वित्तीय सलाहकार राज कुमार अरोड़ा सहित कई वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे।
उपराष्ट्रपति ने अधिकारियों का स्वागत करते हुए रक्षा लेखा विभाग की 275 वर्षों से अधिक की समृद्ध विरासत का उल्लेख किया और इसे सरकार के सबसे पुराने विभागों में से एक बताया। उन्होंने 2047 तक विकसित भारत के लक्ष्य की चर्चा करते हुए कहा कि अमृतकाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में देश तेजी से आगे बढ़ रहा है। इस सपने को साकार करने में सिविल सेवकों की भूमिका अहम होगी।
विकास को समावेशी और अंतिम व्यक्ति तक पहुंचाने वाला बनाने पर जोर देते हुए उन्होंने युवा अधिकारियों की ऊर्जा और नवोन्मेषी सोच को राष्ट्र निर्माण का महत्वपूर्ण हिस्सा बताया।
आईडीएएस की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि यह सेवा सशस्त्र बलों और संबद्ध संगठनों के वित्तीय प्रबंधन में केंद्रिय भूमिका निभाती है। सशस्त्र बलों की परिचालन तत्परता सुनिश्चित करने के लिए विवेकपूर्ण वित्तीय प्रबंधन आवश्यक है।
तेजी से बदलते तकनीकी युग में निरंतर सीखने की जरूरत बताते हुए उपराष्ट्रपति ने आईडीएएस कर्मयोगी जैसे प्लेटफॉर्म्स का उपयोग करने को प्रोत्साहित किया।
एक प्रशिक्षु के सवाल पर उपराष्ट्रपति ने सिविल सेवकों से नवीन विचार अपनाने, तकनीक का उपयोग करने, उत्साह बनाए रखने, सहानुभूति रखने और प्रशासनिक नैतिकता का पालन करने की अपील की।
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