गाजियाबाद। कोरोना वायरस की दूसरी लहर में कई ऐसी मार्मिक कहानियां सामने आ रही हैं कि लोग सन्न हो जा रहे हैं,लोगों के मुंह से बस यही निकल रहा है यह क्या हुआ ? अब इनका क्या होगा ? तमाम ऐसे सवाल उठ रहे हैं जो जीवन के लिए एक सबक है। ये बड़ों के हो सकते हैं लेकिन , मासूम जब ये पूछे कि मेरे माता -पिता कहां गए तो, बरबस ही सभी के आखों से गंगा यमुना बह चलेगी। ऐसा ही कुछ हुआ है दिल्ली से सटे गाजियाबाद में। यहां दो बच्चियां अपने रिश्तेदारों से यही पूछ रही हैं कि …..
गाजियाबाद की क्रॉसिंग रिपब्लिक सोसाइटी में रहने वाले एक व्यक्ति ने बताया कि टावर-2 के फ्लैट नंबर 205 में दुर्गेश प्रसाद का परिवार रहता था. दर्गेश रिटायर्ड शिक्षक थे. वे अच्छे स्वभाव के व्यक्ति थे और सामाजिक कामों में हमेशा आगे रहते थे. कोरोना संक्रमित होने के बाद दुर्गेश घर में ही आइसोलेट हो गए थे और दवा ले रहे थे. लेकिन एक दिन उनकी स्थिति बहुत बिगड़ गई. इसी दौरान उनकी पत्नी, बेटा और बहू भी कोरोना की चपेट में आ गए. शारदा अस्पताल में कराया गया भर्ती 27 अप्रैल को दुर्गेश कोरोना से जंग हार गए, घर पर ही उनकी मौत हो गई. इसके बाद सोसाइटी के लोगों ने बाकी तीनों सदस्यों को ग्रेटर नोएडा के शारदा अस्पताल में भर्ती करवा दिया. यहां इलाज के दौरान 4 मई को दुर्गेश के बेटे अश्वनी की मौत हो गई. इस दुख से परिवार उबरता इससे पहले ही 5 मई को अश्वनी की मां की मौत हो गई.
इसके दो दिन बाद 7 मई को अश्वनी की पत्नी की भी मौत हो गई. कोरोना से कुछ दिन में पूरे परिवार को खत्म कर दिया. अब परिवार में सिर्फ 6 और 8 साल की दो बच्चियां बचीं हैं. कोरोना संक्रमण के चलते कोई भी व्यक्ति अंतिम संस्कार के लिए आगे नहीं आया. इसके बाद दुर्गेश प्रसाद की बेटी को ये बात पता चली तो वो गाजियाबाद पहुंची और परिवार के लोगों का अंतिम संस्कार किया.
किसी के पास नहीं है बच्चियों के सवालों का जवाब अब रिश्तेदारों के सामने सबसे बची चुनौती थी कि बच्चियों परवरिश कैसे और कहां होगी. तो ऐसे में बुआ ने दोनों बच्चियों की जिम्मेदारी ली. रिश्तेदार अभी बच्चियों के ये भी नहीं समझा पा रहे हैं कि उनके साथ हुआ क्या है. बच्चियां बार-बार अपने माता-पिता और दादा-दादी के बारे में पूछ रहीं हैं, लेकिन किसी के पास कोई जवाब नहीं है.