जब कोई व्यक्ति हिंदू धर्म से ईसाई धर्म अपनाता है, तो उस व्यक्ति की जातिगत पहचान खत्म हो जाती है: सुप्रीम कोर्ट

जब कोई व्यक्ति हिंदू धर्म से ईसाई धर्म अपनाता है, तो उस व्यक्ति की जातिगत पहचान खत्म हो जाती है: सुप्रीम कोर्ट

When a person converts from Hinduism to Christianity, that person loses his caste identity: Supreme Court

सोमवार (26 नवंबर) भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए आरक्षण का लाभ लेने के लिए बिना किसी वास्तविक आस्था के धर्म परिवर्तन करना, संविधान के साथ धोखाधड़ी है कहा है। सर्वोच्च न्यायालय ने सी सेल्वरानी द्वारा दायर एक अपील को खारिज की है।

दरसल सी सेल्वरानी को रोजगार में आरक्षण का लाभ लेने के उद्देश्य से हिंदू धर्म में वापस आने के कारण हिंदू धर्म में घरवापसी करने के लिए प्रमाणपत्र देने से मना किया था। न्यायमूर्ति पंकज मित्थल और न्यायमूर्ति आर महादेवन की सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने इस मामले में मद्रास उच्च न्यायालय के 2023 के फैसले को बरकरार रखते हुए इस बात पर जोर दिया कि व्यवस्था का ऐसा दुरुपयोग करने से सामाजिक रूप से असल वंचित समुदायों के उत्थान के उद्देश्य से आरक्षण नीतियों को कमजोर करता है। वरिष्ठ अधिवक्ता एन.एस.नप्पिनई ने सेल्वरानी का प्रतिनिधित्व किया, जबकि अधिवक्ता अरविंद एस प्रतिवादियों के लिए पेश हुए।

सेल्वरानी ने पुडुचेरी में एससी श्रेणी के तहत अपर डिवीजन क्लर्क के पद के लिए आवेदन किया था। अपने आवेदन में, उसने वल्लुवन जाति से संबंधित होने का दावा किया, जिसे संविधान (पांडिचेरी) अनुसूचित जाति आदेश, 1964 के तहत अनुसूचित जाति के रूप में मान्यता प्राप्त है। अपनी याचिका में, उसने तर्क दिया कि उसके पिता और भाई सहित उसके परिवार को ऐतिहासिक रूप से उक्त जाति के सदस्यों के रूप में माना जाता था। उसने आगे दावा किया कि उसे अतीत में एससी प्रमाणपत्र मिले थे।

उसने यह भी दावा किया कि वह हिंदू प्रथाओं का पालन करती है और उसने जोर देकर कहा कि वह फिर से हिंदू धर्म में घरवापसी कर चुकी है और इसीलिए वह अब वल्लुवन जाति के तहत एससी समुदाय के लिए आरक्षित लाभों की हक़दार भी है। उसने दावा किया कि उसके हिंदू पिता वल्लुवन परिवार में पैदा हुए थे। हालाँकि बाद में उन्होंने उसके जन्म से पूर्व ईसाई धर्म अपनाया। इस पर तर्क देते हुए सेल्वरानी ने कहा की उसने हिंदू धर्म अपनाने के बाद सभी परम्पराओं का सक्रिय रूप से पालन किया, धार्मिक अनुष्ठान किए और हिंदू मंदिरों के दौरे भी किए। हालाँकि, जाँच के दौरान उसके दावे विरोधाभासी साबित हुए।

पिछले निर्णयों का हवाला देते हुए, न्यायालय ने कहा “एक हिंदू की जाति अनिवार्य रूप से जन्म से निर्धारित होती है। जब कोई व्यक्ति ईसाई धर्म या किसी अन्य धर्म में परिवर्तित होता है, तो मूल जाति ग्रहण के अधीन रहती है, और जैसे ही वह व्यक्ति अपने जीवनकाल के दौरान मूल धर्म में वापस परिवर्तित होता है, ग्रहण गायब हो जाता है, और जाति अपने आप पुनर्जीवित हो जाती है। हालाँकि, जहाँ ऐसा प्रतीत होता है कि पुराने धर्म में वापस परिवर्तित व्यक्ति कई पीढ़ियों से ईसाई धर्म में परिवर्तित था, वहाँ जाति के पुनरुद्धार के लिए ग्रहण के सिद्धांत को लागू करना मुश्किल हो सकता है।”

अदालत ने कहा कि हिंदू धर्म के विपरीत ईसाई धर्म में कोई जातिगत भेदभाव नहीं है। इसलिए, जब कोई व्यक्ति हिंदू धर्म से ईसाई धर्म अपनाता है, तो उस व्यक्ति की जातिगत पहचान खत्म हो जाती है। सर्वोच्च न्यायालय ने अधिकारियों और मद्रास उच्च न्यायालय के निष्कर्षों को यह निष्कर्ष निकालते हुए बरकरार रखा कि अपीलकर्ता पांडिचेरी अनुसूचित जाति आदेश, 1964 के तहत एससी स्थिति के मानदंडों को पूरा करने में विफल रहा। न्यायालय ने सेल्वरानी की अपील को खारिज कर दिया।

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बता दें की, सितंबर 2022 में, तत्कालीन केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने राज्यसभा में कहा कि जिन दलितों ने अपना धर्म त्याग दिया है और इस्लाम या ईसाई धर्म अपना लिया है, उन्हें अनुसूचित जाति (एससी) के लिए आरक्षित निर्वाचन क्षेत्रों से संसदीय या विधानसभा चुनाव लड़ने की अनुमति नहीं दी जाएगी और उन्हें अन्य आरक्षण लाभों का दावा करने की अनुमति नहीं दी जाएगी।

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