कौन थे आचार्य विद्यासागर महाराज? जिन्होंने आजीवन त्यागा था नमक-फल

आचार्य विद्यासागर महाराज ने कभी भी आजीवन चीनी, नमक और चटाई का उपयोग नहीं किया।

कौन थे आचार्य विद्यासागर महाराज? जिन्होंने आजीवन त्यागा था नमक-फल

दिगंबर मुनि परंपरा के आचार्य विद्यासागर महाराज का छत्तीसगढ़ के चंद्रगिरि तीर्थ में शनिवार को देर रात निधन हो गया। वह 77 साल के थे। आचार्य विद्यासागर महाराज के निधन पर छत्तीसगढ़ सरकार ने आधे दिन का राजकीय शोक घोषित किया गया है। आचार्य विद्यासागर महाराज कई भौतिक चीजों का त्याग किया था।

आचार्य विद्यासागर महाराज का कोई बैंक खाता नहीं है। कोई ट्रस्ट नहीं, कोई मोह माया नहीं, उनके अनुयायियों द्वारा अरबों रूपये दिए जाने के बाद गुरुदेव उन्हें कभी स्पर्श भी नहीं किया। इसके अलावा, आजीवन चीनी, नमक और चटाई का उपयोग नहीं किया। आचार्य विद्यासागर महाराज इसके साथ आजीवन हरी सब्जी, फल, अंग्रेजी दवाओं का त्याग सीमित भोजनऔर सीमित जल का सेवन किया। उन्होंने आजीवन दही का त्याग, सूखे मेवे का त्याग, आजीवन तेल का त्याग किया। इसके अलावा कई और भौतिक साधना उन्होंने त्याग किया। आचार्य विद्यासागर महाराज बिना चादर के एक ही करवट सोते थे, वे हर मौसम में तख़्त पर सोये, उन्होंने गद्दा और न ही कभी तकिये का इस्तेमाल किया। आचार्य विद्यासागर महाराज दिगंबर जैन समुदाय के सबसे प्रसिद्ध संत थे। उनका जन्म 10 अक्टूबर 1946 को कर्नाटक के सदलगा में हुआ था।

आचार्य विद्यासागर महाराज ने छोटी उम्र में ही आध्यात्मिकता को अपना लिया था। वे 22 साल की आयु में आचार्य विद्यासागर महाराज ने ज्ञानसागर जी महाराज से दिगंबर साधु के रूप में दीक्षा ली थी। उन्हें 1972 में आचार्य का दर्जा दिया गया। अपने पूरे जीवन में आचार्य विद्यासागर महाराज जैन धर्मग्रंथों और दर्शन के अध्ययन और अनुप्रयोग में गहराई से लगे रहे। उन्हें कई भाषाओं का ज्ञान भी था। उन्होंने कई ज्ञानवर्धक टिप्पणियाँ, कविताएँ और आध्यात्मिक ग्रंथ भी लिखे हैं।

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