कुंडली में शुभ मंगल जहां आपको सुंदर जीवन साथी प्रदान करता है, वहीं शुभ बृहस्पति की उपस्थिति जातक की शादी को बनाए रखने में मदद करती है।
बृहस्पत वैस तो सभी ग्रहों में सबसे अधिक लाभकारी माना गया है। लेकिन, कभी-कभी, यह नीच या क्रूर ग्रहों के प्रभाव के कारण प्रतिकूल प्रभाव भी डालता है।
वैदिक ज्योतिष के अनुसार गुरु ग्रह को धनु और मीन राशि का स्वामी कहा जाता है। वहीं मकर इसकी नीच राशि है। ऐसे में किसी भी जातक की कुंडली में गुरु का शनि या केतु के साथ संबंध बेहद बुरा माना जाता है।
ऐसे में जिन जातकों की कुंडली में बृहस्पति कमजोर या नीच के हों उन्हें शक्कर, केला, पीला वस्त्र, केसर, नमक, पीली मिठाईयां, हल्दी, पीला फूल और भोजन का दान करना उत्तम माना गया है। इसके साथ ही रक्त दान करने से भी गुरु ग्रह का शुभ लाभ मिलता है।
बृहस्पति को शुभ बनाने के लिए आप अपने माथे पर चंदन का लेप या तिलक लगा सकते हैं। आप पीले रंग के आभूषण जिसमें सोना सबसे शुभ माना जाता है, धारण कर सकते हैं। साथ ही इस दिन पीले परिधान भी धारण कर सकते हैं। गुरुवार को गुरु का दिन माना गया है, इस दिन गाय को चारा खिलाना चाहिए, उसकी सेवा करनी चाहिए, इससे कुंडली में गुरु ग्रह के शुभ प्रभावों में वृद्धि होती है। इससे नवग्रहों की शांति भी होती है।
वाराणसी यानी भगवान शिव की नगरी, जिस काशी के नाम से जानते हैं। कहा जाता है कि यह भगवान शिव के त्रिशूल पर बसा हुआ है। यहां भगवान शिव के मंदिर के अलावा गुरु बृहस्पति का भी एक मंदिर है, जो प्राचीन और बेहद प्रसिद्ध है।
उत्तराखंड के नैनीताल जिले के ओखलकांडा क्षेत्र में देवगुरु बृहस्पति का मंदिर है। जो कि देवगुरु पर्वत की चोटी पर स्थित है । इस मंदिर को देवगुरु बृहस्पति की तपस्थली माना जाता है। कहा जाता है यहां बृहस्पति देव ने तपस्या की थी। इसलिए इस पर्वत को देवगुरु पर्वत कहा जाता है।
राजस्थान की राजधानी जयपुर में भगवान बृहस्पति देव का एक मंदिर है। यह जयपुर के महारानी फार्म में स्थित है। इस मंदिर में शुद्ध सोने की बृहस्पति देव की प्रतिमा स्थापित है।
दक्षिण भारत के तमिलनाडु राज्य के तिरुवरूर जिले से 38 किमी दूर गांव है अलंगुड़ी। यहां श्री आपत्सहायेश्वर महादेव का मंदिर है। लोक मान्यता है कि ये वही स्थान है जहां भगवान शिव ने समुद्र मंथन से निकला हलाहल विष पीया था।
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