एक नए अध्ययन में खुलासा हुआ है कि एक सामान्य जीन वैरिएंट दुनिया भर में लाखों पुरुषों में टाइप-2 मधुमेह (डायबिटीज) के निदान में देरी कर सकता है, जिससे गंभीर जटिलताओं का खतरा बढ़ जाता है। यह वैरिएंट जी6पीडी की कमी से जुड़ा है, जो एक आनुवंशिक स्थिति है। इसका प्रभाव वैश्विक स्तर पर 40 करोड़ से अधिक लोगों पर पड़ता है और यह विशेष रूप से अफ्रीकी, एशियाई, मध्य पूर्वी और भूमध्यसागरीय पृष्ठभूमि वाले लोगों में आम पाई जाती है। यह स्थिति पुरुषों में ज्यादा दिखाई देती है और अक्सर बिना लक्षण के रह जाती है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) पहले ही उन आबादियों में जी6पीडी की नियमित जांच की अपील कर चुका है, जहां यह अधिक आम है। लेकिन कई देशों में अभी भी यह जांच व्यापक रूप से लागू नहीं हुई है।
एक्सेटर विश्वविद्यालय और क्वीन मैरी यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन (क्यूएमयूएल) के शोधकर्ताओं ने पाया कि जी6पीडी की कमी वाले पुरुषों में मधुमेह का पता औसतन चार साल देर से चलता है, जबकि अन्य पुरुषों में यह जल्दी पहचान लिया जाता है। अध्ययन में यह भी सामने आया कि 50 में से एक से भी कम व्यक्ति में इस स्थिति का औपचारिक निदान होता है।
‘डायबिटीज केयर’ पत्रिका में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, जी6पीडी की कमी वाले पुरुषों में डायबिटीज से संबंधित छोटी रक्त वाहिकाओं की जटिलताओं—जैसे आंख, गुर्दे और नसों को नुकसान—का खतरा 37 प्रतिशत तक अधिक होता है।
विशेषज्ञों का कहना है कि जी6पीडी की कमी से डायबिटीज नहीं होता, लेकिन यह आम खून की जांच एचबीए1सी के नतीजों को प्रभावित करता है। यह टेस्ट डायबिटीज की पहचान और प्रबंधन के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मानक है और 136 देशों में उपयोग किया जाता है। जी6पीडी की कमी के कारण यह टेस्ट अक्सर गलत परिणाम दिखाता है और शुगर लेवल कम आंका जाता है। इसका सीधा असर मरीज और डॉक्टर के फैसलों पर पड़ता है और सही समय पर इलाज शुरू नहीं हो पाता।
प्रोफेसर इनेस बरोसो (एक्सेटर विश्वविद्यालय) ने कहा, “हमारे निष्कर्ष स्वास्थ्य असमानताओं से निपटने के लिए परीक्षण प्रथाओं में बदलाव की तत्काल आवश्यकता को उजागर करते हैं। डॉक्टरों और स्वास्थ्य नीति निर्माताओं को ध्यान रखना चाहिए कि जी6पीडी की कमी वाले लोगों के लिए एचबीए1सी टेस्ट हमेशा सटीक नहीं होता। जोखिम वाले लोगों की पहचान के लिए नियमित जी6पीडी जांच बेहद अहम हो सकती है।”
शोधकर्ताओं का मानना है कि नए और ज्यादा विश्वसनीय परीक्षण विकसित किए जाने चाहिए, ताकि डायबिटीज के निदान और उपचार में देरी न हो और गंभीर जटिलताओं से समय रहते बचा जा सके।



