भारत में लिवर से जुड़ी बीमारियों को लेकर एक बड़ा भ्रम फैला हुआ है कि केवल शराब पीने वाले ही इसकी चपेट में आते हैं। लेकिन हाल के अध्ययनों और चिकित्सा विशेषज्ञों के मुताबिक, कई ऐसे गैर-ज़हरीले यानी “non-toxic” दिखने वाले व्यवहार हैं जो धीरे-धीरे लिवर को नुकसान पहुंचा रहे हैं। इनमें सबसे प्रमुख हैं—शक्कर और रिफाइंड कार्ब वाला भोजन, निष्क्रिय जीवनशैली, और दवाइयों का बेतहाशा इस्तेमाल।
1. शक्कर और रिफाइंड कार्ब्स से भरपूर डाइट
भारत की थाली में सफेद चावल, रोटी, मीठी चाय, मिठाइयां और पैकेज्ड जूस आम बात है। यह सब हमारे लिवर पर एक अदृश्य हमला कर रहे हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, जब शरीर में जरूरत से ज्यादा फ्रक्टोज़ और शक्कर जाती है, तो लिवर उसे ट्राइग्लिसराइड्स में बदल देता है—जिससे फैटी लिवर यानी MASLD (पहले NAFLD कहा जाता था) की शुरुआत होती है।
रिपोर्टों के अनुसार भारत के शहरों में 38% तक शराब न पीने वाले लोगों में भी फैटी लिवर पाया गया है। यह शुरुआती स्टेज में “steatosis” होता है, लेकिन समय पर ध्यान न दिया जाए तो यह फाइब्रोसिस और सिरोसिस जैसी जानलेवा स्थितियों में बदल सकता है।
2. निष्क्रिय जीवनशैली और मोटापा
स्क्रीन टाइम बढ़ता जा रहा है, ऑफिस की कुर्सियों से उठना कम हो गया है, और वर्कआउट तो बस रेजोल्यूशन तक ही सीमित रह जाता है। इसका सीधा असर लिवर पर होता है। लगातार बैठने और व्यायाम की कमी से मेटाबॉलिक सिंड्रोम विकसित होता है—जिसमें मोटापा, हाई बीपी, हाई ब्लड शुगर और ट्राइग्लिसराइड शामिल होते हैं। ये सभी फैटी लिवर को जन्म देते हैं।
विशेषज्ञों के मुताबिक, 60–70% डायबिटिक या मोटे भारतीयों में फैटी लिवर के लक्षण पाए जाते हैं। बिना फिजिकल एक्टिविटी के लिवर वसा से भरता जाता है, जिससे सूजन और धीरे-धीरे स्कारिंग हो सकती है।
3. पेनकिलर और दवाओं का अंधाधुंध इस्तेमाल
भारत में सेल्फ-मेडिकेशन यानी बिना डॉक्टर की सलाह के दवा लेना आम है। ज़रा सा सिरदर्द हो या हल्की बुखार—पैरासिटामोल, एंटीबायोटिक या ‘हर्बल सप्लीमेंट्स’ तुरंत ले लिए जाते हैं। लेकिन ये दवाएं लिवर में जाकर टूटती हैं, और ज्यादा या लम्बे समय तक इस्तेमाल करने पर acute toxic hepatitis या फाइब्रोसिस का कारण बन सकती हैं।
डॉक्टर चेतावनी देते हैं कि खासकर पेनकिलर जैसे पैरासिटामोल का नियमित और अनियंत्रित सेवन लिवर को चुपचाप नुकसान पहुंचाता है।
क्यों है खतरा ज्यादा?
खान-पान की आदतें: फास्ट फूड, पैकेज्ड ड्रिंक्स, और कार्ब्स पर आधारित डाइट तेजी से बढ़ रही है।
मेटाबॉलिक महामारी: शहरी भारत में मोटापा, डायबिटीज और आलस्य का मेल लिवर के लिए विनाशकारी बन चुका है।सेल्फ-मेडिकेशन की संस्कृति: फार्मेसी से बिना नुस्खे के दवा लेना एक सामान्य व्यवहार बन गया है, जिससे लिवर लगातार तनाव में रहता है।
बचाव के आसान उपाय:
रिफाइंड शक्कर की जगह साबुत अनाज और मौसमी फल खाएं। ब्राउन राइस, ज्वार, बाजरा और ओट्स अपनाएं।नियमित, हफ्ते में कम से कम 150 मिनट की फिजिकल एक्टिविटी जरूरी है। दवाइयों का समझदारी से इस्तेमाल करें, डॉक्टर की सलाह के बिना कोई भी दवा न लें, खासकर पेनकिलर या हर्बल कैप्सूल्स।
भारत में लिवर की बीमारी अब सिर्फ शराब पीने वालों तक सीमित नहीं है। अब सामान्य जीवनशैली की आदतें, जैसे ज्यादा मीठा, कम चलना-फिरना और OTC दवाओं का अंधाधुंध इस्तेमाल, बिना किसी लक्षण के लिवर को बर्बाद कर रही हैं। यदि समय रहते सावधानी न बरती गई, तो आने वाले वर्षों में फैटी लिवर और लीवर फेलियर के मामलों में भारी इजाफा देखने को मिल सकता है।



