मानसिक तनाव, चिंता और अवसाद आज की जीवनशैली का आम हिस्सा बन चुके हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के आंकड़ों के मुताबिक, दुनिया में हर 8 में से 1 व्यक्ति किसी न किसी मानसिक विकार से जूझ रहा है। लेकिन आयुर्वेद में इन समस्याओं का समाधान हजारों साल पहले ही बताया गया था, जिसे ‘सत्त्वावजय चिकित्सा’ कहा जाता है। इसे दुनिया की पहली प्रलेखित मनोचिकित्सा प्रणाली भी माना जाता है।
क्या है सत्त्वावजय चिकित्सा?
आयुर्वेद में सत्त्वावजय चिकित्सा मन को नियंत्रित करने और नकारात्मक विचारों से दूर रखने पर केंद्रित एक गैर-औषधीय पद्धति है। चरक संहिता में इसे परिभाषित करते हुए कहा गया है कि यह प्रक्रिया व्यक्ति को हानिकारक इच्छाओं और तनावों से बचाती है। आयुर्वेद के अनुसार, मन सत्त्व (शांति, संतुलन), रजस (उत्तेजना) और तमस (आलस्य) इन तीन गुणों से संचालित होता है। मानसिक विकार तब बढ़ते हैं जब रजस और तमस हावी हो जाते हैं। सत्त्वावजय चिकित्सा इन पर नियंत्रण करके सत्त्व की शक्ति को बढ़ाती है और मानसिक संतुलन बहाल करती है।
कैसे काम करती है यह पद्धति
इस चिकित्सा में अष्टांग योग की तकनीकें अहम भूमिका निभाती हैं, जिनमें ध्यान, प्राणायाम, आत्म-नियंत्रण और आत्म-चिंतन शामिल हैं। नियमित ध्यान और योग आसन तनाव को कम करते हैं, जबकि प्राणायाम मन को स्थिरता देता है। इसके साथ ही ताजे, शुद्ध और हल्के भोजन का सेवन, नियमित दिनचर्या और प्रकृति के साथ समय बिताना मानसिक शांति को बढ़ावा देता है।
सत्त्वावजय चिकित्सा चिंता, अवसाद और तनाव जैसे विकारों के मूल कारणों को ठीक करने पर केंद्रित है, न कि केवल लक्षणों पर। यह दवाओं पर निर्भरता कम करती है और व्यक्ति को आत्म-जागरूकता, आत्म-नियंत्रण और मानसिक शक्ति प्रदान करती है। इसके अलावा, प्रार्थना, भक्ति और आध्यात्मिक साधनाओं के जरिए भी मन को सकारात्मक दिशा में मोड़ने पर बल देती है।
भारत सरकार का आयुष मंत्रालय भी WHO के आंकड़ों के साथ इस पद्धति को बढ़ावा दे रहा है। मंत्रालय का मानना है कि आधुनिक मानसिक स्वास्थ्य संकट का समाधान भारत की प्राचीन आयुर्वेदिक विधियों में छिपा है।
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