रेस्तरां में मेन्यू कार्ड पर नमक की चेतावनी लगाने जैसी सरल पहल भी लोगों को गंभीर बीमारियों से बचा सकती है। लैंसेट पब्लिक हेल्थ जर्नल में प्रकाशित यूनिवर्सिटी ऑफ लिवरपूल के एक नए अध्ययन में यह दावा किया गया है कि ऐसे चेतावनी लेबल उपभोक्ताओं को अधिक नमक वाले व्यंजन चुनने से रोक सकते हैं और उन्हें स्वास्थ्यवर्धक विकल्प अपनाने के लिए प्रेरित कर सकते हैं।
यह शोध दुनिया भर में तेजी से बढ़ रही हृदय और किडनी संबंधी बीमारियों के खिलाफ एक प्रभावी रणनीति के रूप में देखा जा रहा है। अध्ययन में पहली बार यह विश्लेषण किया गया कि मेन्यू पर नमक की चेतावनी दिखाई देने से ग्राहक किन व्यंजनों का चुनाव करते हैं और क्या वाकई इससे उनके खाने की आदतों में फर्क आता है।
नतीजे बताते हैं कि चेतावनी लेबल वाले मेन्यू देखने वालों ने ज्यादा नमक वाले खाने से परहेज किया और उनके द्वारा ऑर्डर किए गए भोजन में नमक की मात्रा औसतन 12.5 प्रतिशत (0.54 ग्राम) तक कम पाई गई। ऑनलाइन किए गए एक समानांतर सर्वेक्षण में भी यही रुझान दिखा, जहां नमक की मात्रा 0.26 ग्राम प्रति भोजन कम देखी गई।
अध्ययन की प्रमुख शोधकर्ता डॉ. रेबेका इवांस ने कहा,“मेन्यू पर नमक चेतावनी लेबल लोगों को अधिक स्वस्थ विकल्प चुनने में मदद करते हैं। अधिक नमक का सेवन आहार से जुड़ी कई गंभीर बीमारियों की वजह बनता है, और इस तरह की लेबलिंग पॉलिसी सार्वजनिक स्वास्थ्य को सुधारने में बेहद अहम भूमिका निभा सकती है।”
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, एक वयस्क को प्रतिदिन 5 ग्राम से कम नमक यानी लगभग एक चम्मच से भी कम सेवन करना चाहिए। लेकिन वैश्विक आंकड़े बताते हैं कि हर साल 18.9 लाख मौतें अधिक नमक के सेवन से जुड़ी होती हैं। अधिक नमक से शरीर में सोडियम की मात्रा बढ़ती है, जिससे पानी का जमाव, हाई ब्लड प्रेशर, दिल का दौरा, स्ट्रोक, किडनी फेल्योर, ऑस्टियोपोरोसिस और मोटापे जैसी गंभीर समस्याएं हो सकती हैं।
डॉ. इवांस ने यह भी कहा,“यह शोध दिखाता है कि खरीदारी या ऑर्डर के समय छोटे-छोटे बदलाव — जैसे कि चेतावनी लेबल — उपभोक्ता को सोचने पर मजबूर कर सकते हैं और उन्हें बेहतर विकल्प की ओर मोड़ सकते हैं।” विशेषज्ञों का मानना है कि यह अध्ययन नीति-निर्माताओं के लिए भी एक दिशा संकेत है। यदि रेस्तरां और फूड चेन को नमक की मात्रा के बारे में पारदर्शी चेतावनी देना अनिवार्य किया जाए, तो यह देशभर में गैर-संक्रमणीय रोगों को कम करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है।
स्वास्थ्य विशेषज्ञ लंबे समय से यह मांग कर रहे हैं कि रेस्तरां और पैक्ड फूड में नमक, शुगर और ट्रांस फैट की मात्रा को स्पष्ट रूप से दर्शाना चाहिए, जिससे उपभोक्ता जागरूक होकर अपना चयन कर सकें। यह अध्ययन एक बार फिर यह साबित करता है कि सार्वजनिक स्वास्थ्य सुधार सिर्फ दवाओं या अस्पतालों से नहीं, बल्कि सूचनात्मक नीतियों और छोटे-छोटे व्यवहारिक परिवर्तनों से भी संभव है।
यह भी पढ़ें:
“कान खोलकर सुन लें, 22 अप्रैल से 16 जून तक पीएम मोदी और ट्रंप के बीच कोई बातचीत नहीं हुई।”
टीआरएफ लश्कर-ए-तैयबा का मुखौटा, संयुक्त राष्ट्र और अमेरिका ने भारत के दावे को दी मान्यता!
बीमार महिला को अस्पताल पहुंचाया तो जेल में काटने पड़े 13 महीने, इंसानियत की मिली सज़ा?



