बांबे हाईकोर्ट ने कहा है कि फुटपाथ का उद्देश्य यातायात का सुगम मार्ग सुनिश्चित करना और पैदल चलने वालों के लिए एक सुरक्षित रास्ता उपलब्ध कराना है तथा यह उद्देश्य तब विफल हो जाता है जब कोई महानगर पालिका स्टॉल मालिकों को फुटपाथ के ठीक बीच में स्टॉल लगाने की अनुमति देता है। न्यायमूर्ति एस बी शुकरे और न्यायमूर्ति एम डब्ल्यू चंदवानी की पीठ ने एक फरवरी को मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) को पिछले साल लिए गए एक फैसले पर पुनर्विचार करने का निर्देश दिया, जिसमें 11 स्टाल मालिकों को मध्य मुंबई के वर्ली में एक अस्पताल के बाहर स्थित फुटपाथ पर स्टॉल लगाने की अनुमति दी गई थी।
अदालत तिलक अस्पताल संचालित करने वाले गैर सरकारी संगठन ‘द बॉम्बे मदर्स एंड चिल्ड्रन वेलफेयर सोसाइटी’ द्वारा बीएमसी के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिकाकर्ता के वकील सतीश बोरुलकर ने दलील दी कि अस्पतालों, शैक्षणिक संस्थानों और किसी भी पूजा स्थल के 100 मीटर के दायरे में फेरी लगाने पर रोक है। बीएमसी ने दावा किया कि यह प्रतिबंध फेरीवालों पर लागू है न कि स्टॉल मालिकों पर।
उच्च न्यायालय ने कहा कि वह इस मुद्दे पर गौर करेगा, लेकिन कहा कि फुटपाथ के उचित उपयोग के संबंध में एक मुद्दा है जो पैदल चलने वालों के लिए है और किसी के अपना व्यवसाय करने के लिए नहीं है। अदालत ने कहा, ‘‘यदि निगम किसी स्टॉल मालिक को फुटपाथ पर स्टॉल लगाने की अनुमति देता है, तो निगम प्रथम दृष्टया जनहित के विरुद्ध कार्य कर रहा है क्योंकि इससे पैदल चलने वालों को बाधा उत्पन्न होती है और परिणामस्वरूप लोगों को पैदल चलने के लिए सड़क का इस्तेमाल करना पड़ता है।
इससे वे खुद अपने जीवन को तो खतरे में डालते हैं, सड़क पर चलने वाले वाहनों में सवार लोगों को भी खतरा होता है।’’ अदालत ने कहा है कि फुटपाथ का उद्देश्य वाहनों या यातायात को सुगम बनाना तथा पैदल चलने वालों के लिए सुरक्षित रास्ता उपलब्ध कराना है। पीठ ने कहा, ‘‘हमारी राय में, फुटपाथ के ठीक बीच में स्टाल के निर्माण की अनुमति देकर प्रथम दृष्टया इस उद्देश्य को निगम ने विफल कर दिया है।’’ उच्च न्यायालय ने बीएमसी को अपने फैसले पर फिर से विचार करने का निर्देश दिया।
ये भी पढ़ें
ये भी पढ़ें