भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) अब डेटा सेंटर को अंतरिक्ष में स्थापित करने की दिशा में गंभीरता से काम कर रहा है। गुरुवार (11 दिसंबर) को राज्यसभा में पेश किए गए एक जवाब में अंतरिक्ष विभाग ने बताया कि इस महत्वाकांक्षी परियोजना पर की गई प्रारंभिक आंतरिक स्टडी पूरी हो चुकी है, और रिपोर्ट ने इसे व्यवहारक्षम करार दिया है। इसके साथ ही एक शुरुआती सिस्टम-डिज़ाइन की परिकल्पना भी तैयार की जा रही है।
भाजपा सांसद कार्तिकेय शर्मा के सवाल के जवाब में सामने आई, जिसमें उन्होंने पूछा था कि क्या ISRO उपग्रह और संचार डेटा के ऑन-ऑर्बिट प्रोसेसिंग और स्टोरेज के लिए वास्तविक फिजिकल डेटा सेंटरों को अंतरिक्ष में स्थापित करने की संभावना का अध्ययन कर रहा है। विभाग ने पुष्टि की कि ISRO अगली पीढ़ी की सैटेलाइट टेक्नोलॉजी पर काम कर रहा है, जिसमें “ऑन बोर्ड डेटा प्रोसेसिंग” और “डेटा स्टोरेज” प्रमुख क्षेत्रों में शामिल हैं।
जवाब में कहा गया कि ISRO ने ऑन-बोर्ड डेटा प्रोसेसिंग और स्टोरेज को लेकर प्रारंभिक मूल्यांकन किया है, और अध्ययन से पता चलता है कि स्पेस में ‘एज कंप्यूटिंग इंफ्रास्ट्रक्चर’ का एक प्रूफ ऑफ कॉन्सेप्ट विकसित करना संभव है। अंतरिक्ष विभाग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अधीन आता है। विभाग ने कहा है की एक पूर्ण विकसित सिस्टम तैयार होने से पहले कई नई तकनीकों का विकास करना आवश्यक होगा। इनमें इन-ऑर्बिट पावर जनरेशन, रेडिएशन-हार्डेंड GPU/CPU, और कक्षा में घूमने वाले उपग्रहों के लिए विशेष सुरक्षा शील्ड सहित कई जटिल समाधान शामिल हैं।
धरती पर मौजूद डेटा सेंटर भारी मात्रा में बिजली की खपत करते हैं। इसी वजह से अंतरिक्ष में स्थापित डेटा सेंटरों को अत्यधिक ऊर्जा-कुशल तकनीक की जरूरत होगी, जो केवल सौर ऊर्जा और बैटरी बैकअप पर भरोसा कर सके। अंतरिक्ष में इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के लिए सबसे बड़ी चुनौती है उच्च स्तर का विकिरण, जिससे पृथ्वी का वातावरण आमतौर पर सुरक्षा प्रदान करता है। इसलिए स्पेस डेटा सेंटरों को विशेष रूप से विकिरण-सुरक्षा आधारित हार्डवेयर चाहिए होगा।
मंत्रालय के अनुसार, यदि उपग्रहों पर ही डेटा प्रोसेसिंग की सुविधा उपलब्ध हो जाती है, तो धरती पर केवल आवश्यक जानकारी भेजी जाएगी। इससे लेटेंसी में भारी कमी आएगी, जो आपदा प्रबंधन, रणनीतिक अभियानों और अन्य समय-संवेदनशील क्षेत्रों में निर्णायक साबित हो सकती है। इस तरह, उपग्रह न सिर्फ डेटा इकट्ठा करेंगे बल्कि उसी कक्षा में रहते हुए उसकी प्रोसेसिंग भी करेंगे, जिससे जमीन पर तेज़ और सटीक परिणाम मिलेंगे।
इसके अलावा, ऑन-बोर्ड डेटा प्रोसेसिंग से संचार उपग्रहों को इन-ऑर्बिट रिकॉन्फ़िगरेशन की सुविधा मिलेगी, यानी उपग्रह अंतरिक्ष में रहते हुए अपनी संचार क्षमताओं और कॉन्फ़िगरेशन में बदलाव कर सकते हैं। ISRO जिस तकनीक का अध्ययन कर रहा है उसे वैश्विक स्तर पर सैटेलाइट एज कम्प्यूटिंग या स्पेस एज कम्प्यूटिंग कहा जाता है। इस मॉडल में कम्प्यूटेशन और डेटा स्टोरेज को डेटा उत्पन्न होने के स्थान यानी अंतरिक्ष के और भी निकट ले जाया जाता है, बजाय इसके कि हर डेटा को पृथ्वी पर स्थित किसी केंद्रीकृत डेटा सेंटर में भेजा जाए।
ISRO की यह पहल भारत को उन चुनिंदा देशों की श्रेणी में ला खड़ा कर सकती है जो अंतरिक्ष-आधारित डेटा प्रोसेसिंग के भविष्य को आकार दे रहे हैं। यदि इन तकनीकी चुनौतियों पर सफलता पाई जाती है, तो यह वैश्विक सैटेलाइट संचार और डेटा हैंडलिंग की परिभाषा बदलने वाला कदम साबित हो सकता है।
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