उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में हुई हिंसा को लेकर बीते 11 अक्टूबर को सत्ताधारी तीनों दलों शिवसेना, कांग्रेस व एनसीपी द्वारा महाराष्ट्र बंद का एलान करना अब इन तीनों दलों को भारी पड़ता नजर आ रहा है। बांबे हाईकोर्ट ने सत्ताधारी दलों द्वारा बंद आयोजित करने पर नाराजगी जताते हुए तीन सप्ताह में इनसे जवाब मांगा है और कहा है कि जवाब नहीं दिया तो इसके परिणाम सामने दिखाई देंगे।
सत्ताधारी दलों प्रायोजित बंद के खिलाफ पूर्व पुलिस अधिकारी जूलियो रिबेरो और पूर्व मुख्य सचिव जीडी सुथकनकर ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। दोनों पूर्व नौकरशाहों ने याचिका में महाराष्ट्र बंद को अवैध व असंवैधानिक घोषित करने की मांग की है और बंद से प्रभावितों को मुआवजा देने का निर्देश देने का आग्रह किया गया है। याचिका में कहा गया है कि बंद के चलते नागरिकों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा था।
मंगलवार को यह याचिका मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता व न्यायमूर्ति एमएस कर्णिक की खंडपीठ के सामने यह याचिका सुनवाई के लिए आयी। इस दौरान खंडपीठ ने कहा कि तीनों राजनीतिक दल इस याचिक में उठाए गए मुद्दे को लेकर तीन सप्ताह के भीतर हलफनामा दायर करे। यदि तीन हफ्ते में राजनीतिक दलों का जवाब नहीं आता है तो हम बिना जवाब के याचिका पर सुनवाई करेंगे। और इसके परिणाम सामने आएगे। याचिका में कहा गया है कि जिन कृषि कानून के लिए किसान आंदोलन कर रहे थे। उसे सरकार ने रद्द कर दिया है। लेकिन राज्य में सत्ताधारी दलों द्वारा बुलाए गए बंद के चलते तीन हजार करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है। पिछली सुनवाई के दौरान खंडपीठ ने राज्य सरकार को नोटिस जारी किया था और जवाब देने को कहा था।
इस दौरान अतिरिक्त सरकारी वकील ज्योति चव्हाण ने कहा कि उन्हें याचिका पर जवाब देने के लिए समय दिया जाए। वहीं याचिकार्ता की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता आरडी सोनी ने कहा कि 11 अक्टूबर को घोषित किया गया बंद सरकार की ओर से प्रायोजित था। इस मामले को लेकर अब तक किसी राजनीतिक दल ने जवाब नहीं दिया है।जबकि इन्हें याचिका में प्रतिवादी बनाया गया है। खंडपीठ ने याचिका पर सुनवाई के बाद राजनीतिक दलों को जवाब देने के लिए तीन सप्ताह तक का समय दिया है।
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