रक्षा से जुड़े देश के सबसे चर्चित मामलों में से एक में बड़ा मोड़ आया है। ब्रह्मोस एयरोस्पेस लिमिटेड में काम कर चुके इंजीनियर निशांत अग्रवाल को नागपुर बेंच ने सबसे गंभीर आरोपों से बरी कर दिया है। अग्रवाल को अक्टूबर 2018 में पाकिस्तान की खुफिया एजेंसियों को संवेदनशील जानकारी भेजने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था।
निचली अदालत ने आईटी एक्ट और ऑफिशियल सीक्रेट्स एक्ट के तहत दोषी पाते हुए उन्हें 14 साल की सजा सुनाई थी। लेकिन हाई कोर्ट ने इन प्रमुख धाराओं को पूरी तरह खारिज कर दिया है। अदालत ने कहा कि अग्रवाल के खिलाफ जासूसी या देश-विरोधी गतिविधियों का कोई ठोस प्रमाण नहीं है।
हाई कोर्ट ने माना कि उनके निजी कंप्यूटर में कुछ आधिकारिक दस्तावेज पाए गए थे, जो सुरक्षा नियमों का उल्लंघन था। इस अपराध पर निचली अदालत ने उन्हें तीन साल की सजा दी थी। चूंकि अग्रवाल पहले ही इतने समय तक जेल में रह चुके हैं, इसलिए अदालत ने उनकी तत्काल रिहाई का आदेश दिया।
निशांत अग्रवाल को मिलिट्री इंटेलिजेंस (MI), उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र एटीएस की संयुक्त कार्रवाई में गिरफ्तार किया गया था। वे ब्रह्मोस मिसाइल परियोजना से जुड़े तकनीकी अनुसंधान विभाग में काम करते थे। ब्रह्मोस एयरोस्पेस भारत-रूस की संयुक्त कंपनी है, जो सुपरसोनिक ब्रह्मोस मिसाइल बनाती है।
जांच में पता चला था कि ब्रह्मोस से जुड़े कई दस्तावेज उनके निजी लैपटॉप में मौजूद थे। साथ ही यह भी आरोप लगाया था कि 2017 में पाकिस्तानी एजेंटों ने उन्हें Qwhisper, Chat to Hire और X-trust नाम के तीन ऐप इंस्टॉल कराए थे। बाद में पता चला कि ये ऐप्स मैलवेयर थे, जिनका इस्तेमाल डेटा चुराने के लिए किया जाता था।
अग्रवाल ‘सीजल’ नाम की एक महिला से लिंक्डइन और अन्य प्लेटफॉर्म पर चैट कर रहे थे, जो खुद को ब्रिटेन की ‘हेज़ एविएशन’ की भर्तीकर्ता बताती थी। जांच में सामने आया कि यह एक फर्जी पहचान थी और इसका इस्तेमाल भारतीय रक्षा कर्मचारियों को धोखा देने के लिए किया जा रहा था। हाई कोर्ट के इस फैसले के बाद छह साल से चल रही अग्रवाल की कानूनी लड़ाई अब खत्म होती दिखाई देती है।
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