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Friday, December 5, 2025
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रोहिंग्याओं के लिए क्या हम कानून को इतनी दूर तक खींचना चाहते हैं—सुप्रीम कोर्ट ने पूछा सवाल

रोहिंग्या लापता होने की याचिका पर कड़ी टिप्पणी

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सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (2 दिसंबर) को कानून की सीमाओं पर गंभीर सवाल उठाए जिन पर भारतीय कानून को अवैध रूप से देश में प्रवेश करने वाले विदेशी नागरिकों के मामलों में लागू किया जा सकता है। अदालत पांच रोहिंग्या व्यक्तियों के कथित लापता होने पर दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिन्हें पहले हिरासत में लिया गया था।

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) सूर्य कांत की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि ऐसी याचिकाएँ भारतीय नागरिकों के अधिकारों और संसाधनों पर सीधा बोझ डाल सकती हैं। अदालत अब इस मामले की अगली सुनवाई 16 दिसंबर को करेगी।

सुनवाई के दौरान CJI कांत ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि भारत पहले से ही उत्तरी सीमाओं पर गंभीर चुनौतियों का सामना कर रहा है और ऐसे में अवैध रूप से प्रवेश करने वालों के लिए कानून को “अनावश्यक रूप से फैलाने” की मांग व्यावहारिक नहीं है। उन्होंने पूछा कि क्या यह उचित होगा कि सुरंगों या अन्य अवैध तरीकों से भारत में दाखिल होने वाले व्यक्तियों को भोजन, आश्रय और बच्चों के लिए शिक्षा जैसे अधिकार भारतीय नागरिकों के समान मिले।

CJI ने टिप्पणी की, “क्या हम कानून को इतना खींचना चाहते हैं? हमारे गरीब बच्चों का भी अधिकार है। हैबियस कॉर्पस की मांग करना बहुत ‘फैंसीफुल’ है।” याचिकाकर्ता की ओर से दलील दी गई कि यह याचिका केवल उन रोहिंग्या व्यक्तियों के लापता होने से सम्बंधित है, न कि उनके निर्वासन से। लेकिन अदालत ने पूछा कि क्या उनके पास यह प्रमाण है कि ये लोग आधिकारिक रूप से शरणार्थी के रूप में मान्यता प्राप्त थे। CJI कांत ने कहा, “यदि कोई अतिक्रमणकर्ता है…क्या हमारे ऊपर यह दायित्व है कि हम उसे देश के भीतर सुरक्षित रखें?”

इस पर याचिकाकर्ता के वकील ने जवाब दिया, “लेकिन हम उन्हें चोरी-छिपे बाहर भी नहीं भेज सकते।” वहीं केंद्र सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इस याचिका का विरोध किया और कहा कि याचिकाकर्ता का रोहिंग्या समुदाय से कोई प्रत्यक्ष संबंध नहीं है। SG ने कहा, “एक PIL दायर की गई है जिसमें याचिकाकर्ता का रोहिंग्याओं से कोई लेना-देना नहीं है।”

दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने मामले को 16 दिसंबर के लिए सूचीबद्ध कर दिया। अदालत की सख़्त टिप्पणियाँ एक बार फिर इस सवाल को केंद्र में ले आती हैं कि अवैध प्रवासियों के अधिकारों और भारतीय नागरिकों के हितों के बीच संतुलन कैसे बनाया जाए।

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