मुंबई। जावेद अख्तर के आरएसएस की तालिबान से तुलना वाले बयान पर शिवसेना ने पलटवार किया है। शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना में अख्तर के बयान की निंदा करते हुए कहा कि संघ की तुलना तालिबान से करना उचित नहीं है। संघ तालिबानी विचारोंवाला होता तो तीन तलाक कानून नहीं बनता और लाखों मुस्लिम महिलाओं को आजादी की किरण नहीं दिखती।
शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना में लिखा है कि, आरएसएस और विहिप की तुलना तालिबान से करना कतई सही नहीं है और लगातार बहुसंख्यक हिंदुओं को दबाया न जाए। शिवसेना ने संपादकीय में लिखा है कि जावेद अख्तर अपने मुखर बयानों के लिए जाने जाते हैं। देश में जब-जब धर्मांध, राष्ट्रद्रोही विकृतियां उफान पर आईं, तब जावेद अख्तर ने उन धर्मांध लोगों के मुखौटे फाड़े हैं। कट्टरपंथियों की परवाह किए बगैर उन्होंने ‘वंदे मातरम’ गाया है। फिर भी संघ की तालिबान से की गई तुलना हमें स्वीकार नहीं है।’
शिवसेना ने लिखा कि अफगानिस्तान का तालिबानी शासन मतलब समाज और मानव जाति के लिए सबसे बड़ा खतरा है। पाकिस्तान, चीन जैसे राष्ट्रों ने उसका साथ दिया है। हिंदुस्थान की मानसिकता वैसी नहीं दिख रही है। हम हर तरह से जबरदस्त सहिष्णु हैं। लोकतंत्र के बुरखे की आड़ में कुछ लोग तानाशाही लाने का प्रयास कर रहे होंगे फिर भी उनकी सीमा है। इसलिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की तुलना तालिबान से करना उचित नहीं है।’ पार्टी ने कहा कि अख्तर की विचारधारा धर्मनिरपेक्ष है इसलिए ‘हिंदू राष्ट्र’ की संकल्पना का समर्थन करने वाले तालिबानी मानसिकता वाले हैं, ऐसा कैसे कहा जा सकता है? बर्बर तालिबानियों ने अफगानिस्तान में जो रक्तपात, हिंसाचार किया है। जो मानव जाति का पतन कर रहे हैं, वो दिल दहलाने वाला है।
तालिबान के डर से लाखों लोगों ने देश छोड़ दिया है। महिलाओं पर जुल्म हो रहे हैं। अफगानिस्तान नर्क बन गया है। तालिबानियों को वहां सिर्फ शरीयत की ही सत्ता लानी है। हमारे देश को हिंदू राष्ट्र बनाने का प्रयास करने वाले जो-जो लोग या संगठन हैं, उनकी हिंदू राष्ट्र निर्माण की अवधारणा सौम्य है। ‘संघ या शिवसेना तालिबानी विचारों वाली होती तो इस देश में तीन तलाक के खिलाफ कानून नहीं बना होता। लाखों मुस्लिम महिलाओं को आजादी की किरण नहीं दिखी होती।’