मुंबई उपनगरीय रेल नेटवर्क के सबसे गंभीर हादसों में से एक माने जा रहे मुम्ब्रा स्थानीय ट्रेन दुर्घटना की जांच गहराते हुए अब जवाबदेही, सुरक्षा प्रोटोकॉल और तकनीकी निगरानी की खामियों पर नए सवाल खड़े हो रहे हैं। इसी बीच मुंबई उच्च न्यायलय ने दो केंद्रीय रेलवे इंजीनियरों सीनियर सेक्शन इंजीनियर समर यादव और असिस्टेंट डिविजनल इंजीनियर विशाल डोलस को बड़ी राहत देते हुए उनके खिलाफ किसी भी तरह की कड़ी कार्रवाई पर फिलहाल रोक लगा दी है।
दोनों इंजीनियरों ने इस महीने की शुरुआत में ठाणे सेशंस कोर्ट द्वारा अग्रिम जमानत याचिका खारिज किए जाने के बाद हाई कोर्ट का रुख किया था। 20 नवंबर को जस्टिस एन.आर. बोरकर की बेंच में सुनवाई के दौरान अभियोजन पक्ष ने जांच के कागज़ात पेश करने के लिए समय मांगा। अदालत ने मौखिक निर्देश देते हुए कहा कि अगली सुनवाई (9 दिसंबर) तक पुलिस अभियुक्तों के खिलाफ किसी भी तरह की जबरन कार्रवाई नहीं करेगी।
इंजीनियरों के खिलाफ दर्ज FIR वीरमाता जीजाबाई टेक्नोलॉजिकल इंस्टीट्यूट (VJTI) की तकनीकी जांच रिपोर्ट के आधार पर की गई है। रेलवे कमिश्नर के अनुरोध पर 14 अक्टूबर को दी गई रिपोर्ट में VJTI ने कहा कि अनसुधारे हुए ट्रैक की खतरनाक स्थिति के बारे में संबंधित अधिकारी पहले से अवगत थे, और समय रहते मरम्मत नहीं करने से ही यह हादसा हुआ। 9 जून की इस दुर्घटना में दो लोकल ट्रेनों के कोच एक-दूसरे से रगड़ खा गए थे, जिससे पांच यात्रियों की मौत हो गई और नौ घायल हुए थे।
अदालत में पेश दलीलों में दोनों इंजीनियरों ने कहा कि वे अपने नियमित कर्तव्यों का निर्वहन कर रहे थे और उन पर लगाए गए गंभीर आरोप तकनीकी दस्तावेजों पर आधारित हैं ऐसा कोई भी सामग्री नहीं है जिसे वे प्रभावित या नष्ट कर सकते हों। उन्होंने इस दुर्घटना को असामान्य घटना बताया और कहा कि इतने विशाल परिचालन ढांचे में उनकी व्यक्तिगत अधिकार-सीमा को अनावश्यक रूप से बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया है।
FIR दर्ज होने के तुरंत बाद रेलवे कर्मचारियों में भारी आक्रोश फैल गया। विरोध में कर्मचारियों ने फ्लैश स्ट्राइक शुरू कर दी, जिससे उपनगरीय ट्रेन सेवाएँ बुरी तरह बाधित हो गईं। मुम्ब्रा हादसा और इसके बाद की कानूनी-प्रशासनिक हलचल ने एक बार फिर यह साफ कर दिया है कि मुंबई की व्यस्ततम रेल प्रणाली में सुरक्षा, ट्रैक मेंटनेंस और जवाबदेही को लेकर ठोस सुधार की अत्यंत आवश्यकता है।
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