राजस्थान के चर्चित कन्हैया लाल हत्याकांड पर आधारित फिल्म ‘उदयपुर फाइल्स’ को लेकर विवाद गहराता जा रहा है। इस बार जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने सीधे सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन (CBFC) पर गंभीर आरोप लगाए हैं। संगठन ने सेंसर बोर्ड पर आरोप लगाया कि वह ऐसी फिल्मों को मंजूरी देकर देश का सामाजिक माहौल बिगाड़ने की कोशिश कर रहा है।
जमीयत के लीगल एडवाइजर सैयद मौलाना काब रशीदी ने शुक्रवार को कहा कि दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा फिल्म की रिलीज पर अंतरिम रोक लगाना एक सकारात्मक कदम है। यह रोक जमीयत के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी की याचिका पर दी गई, जिन्होंने चेताया था कि फिल्म समाज में नफरत और सांप्रदायिक तनाव को भड़का सकती है। कोर्ट ने जमीयत को सिनेमैटोग्राफ एक्ट की धारा 6 के तहत केंद्र सरकार के पास शिकायत दर्ज करने के लिए दो दिन का समय दिया है, जबकि केंद्र को इस पर एक सप्ताह में फैसला देना होगा।
जमीयत का दावा है कि फिल्म का ट्रेलर भाजपा की पूर्व प्रवक्ता नूपुर शर्मा के 2022 में दिए गए विवादित बयान से शुरू होता है, जिस पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत को आलोचना का सामना करना पड़ा था। रशीदी ने आरोप लगाया कि फिल्म में दारुल उलूम देवबंद और इससे जुड़े धार्मिक नेताओं को आतंकवाद से जोड़कर दिखाया गया है, जो देश के इस्लामिक संस्थानों और उनकी छवि को खराब करने की साजिश है।
उन्होंने कहा, “फिल्म में पैगंबर साहब और उनके अनुयायियों पर अपमानजनक टिप्पणियां की गई हैं, जो सीधे तौर पर सुप्रीम कोर्ट के 2022 के हेट स्पीच फैसले का उल्लंघन है।” रशीदी ने आगे कहा कि ‘कश्मीर फाइल्स’ और ‘केरल स्टोरी’ जैसी फिल्में पहले ही समाज में विभाजनकारी असर डाल चुकी हैं, और अब ‘उदयपुर फाइल्स’ उसी दिशा में एक और कदम है।
जमीयत ने सेंसर बोर्ड पर निशाना साधते हुए कहा कि उसे केवल मनोरंजन के उद्देश्य से फिल्मों को प्रमाणित करना चाहिए, न कि नफरत और सामाजिक टकराव को बढ़ावा देने वाले कंटेंट को। उन्होंने उम्मीद जताई कि अदालत से उन्हें न्याय मिलेगा और यह फैसला एक संभावित बड़ी अशांति को रोकने का काम करेगा। फिलहाल फिल्म की रिलीज पर हाईकोर्ट ने अस्थायी रोक लगा दी है और अब केंद्र सरकार की प्रक्रिया और फैसले पर आगे की दिशा तय होगी।
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