यूपी में रेबीज़ का डर: क्या दूध से फैल सकता है घातक वायरस? डॉक्टरों ने बताई सच्चाई

23 दिसंबर को एक तेहराई समारोह आयोजित हुआ था, जिसमें रायता परोसा गया। कुछ दिनों बाद उसी भैंस की तबीयत बिगड़ गई और उसकी मौत हो गई।

यूपी में रेबीज़ का डर: क्या दूध से फैल सकता है घातक वायरस? डॉक्टरों ने बताई सच्चाई

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उत्तर प्रदेश के बदायूं ज़िले के पिपरौल गांव में एक भैंस की संदिग्ध रेबीज़ से मौत की खबर के बाद अचानक दहशत फैल गई। जानकारी सामने आने के बाद कि एक अंतिम संस्कार (तेहराई) कार्यक्रम में परोसा गया रायता उसी भैंस के दूध से बनाया गया था, करीब 200 ग्रामीणों ने एहतियातन एंटी-रेबीज़ वैक्सीन लगवाई। हालांकि, चिकित्सकों का कहना है कि दूध या दूध से बने खाद्य पदार्थों से रेबीज़ फैलने का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है और लोगों का डर काफी हद तक निराधार था।

ग्रामीणों के अनुसार, 23 दिसंबर को एक तेहराई समारोह आयोजित हुआ था, जिसमें रायता परोसा गया। कुछ दिनों बाद उसी भैंस की तबीयत बिगड़ गई और उसकी मौत हो गई। गांववालों का कहना है कि भैंस को पहले एक आवारा कुत्ते ने काटा था। जैसे ही यह जानकारी फैली, लोगों को आशंका हुई कि कहीं वे रेबीज़ के संपर्क में तो नहीं आ गए। इसके बाद बड़ी संख्या में लोग उज्झानी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पहुंचे, जहां एहतियात के तौर पर उन्हें एंटी-रेबीज़ वैक्सीन दी गई।

चिकित्सा विशेषज्ञों के मुताबिक, रेबीज़ दूध से नहीं फैलता। यह वायरस लगभग हमेशा संक्रमित जानवर की लार के ज़रिये फैलता है, जब वह काटने, खरोंच या खुले घाव के माध्यम से शरीर में प्रवेश करता है।

सीके बिड़ला अस्पताल, गुरुग्राम के इंटरनल मेडिसिन के एसोसिएट डायरेक्टर डॉ. तुषार तयाल बताते हैं, “रेबीज़ वायरस मुख्य रूप से दिमाग और लार ग्रंथियों में पाया जाता है। दूध बनाने वाली मैमरी ग्लैंड्स में इसके मौजूद होने की संभावना बेहद कम होती है।”

डॉ. तयाल के अनुसार, “अगर किसी असंभव स्थिति में दूध में वायरस के अंश मौजूद भी हों, तो उबालने या पाश्चराइजेशन से वह पूरी तरह निष्क्रिय हो जाता है। यदि किसी ने संदिग्ध रेबीज़ वाले पशु का दूध या उससे बना उत्पाद सेवन किया है, तो चिंता की कोई बात नहीं है।” उन्होंने यह भी स्पष्ट किया, “दुनिया भर में अब तक ऐसा कोई भी प्रलेखित मामला नहीं है, जिसमें दूध या भोजन के सेवन से इंसानों में रेबीज़ फैला हो।”

मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, स्थानीय स्वास्थ्य अधिकारियों ने बताया कि ग्रामीणों की घबराहट और आशंकाओं को देखते हुए एहतियातन टीकाकरण किया गया। हालांकि, चिकित्सकीय दृष्टि से इस मामले में वैक्सीन की आवश्यकता नहीं थी।

विशेषज्ञों का कहना है कि दूध पीना जोखिम नहीं है, लेकिन संभावित रूप से रेबीज़ से संक्रमित पशु को छूना या संभालना खतरनाक हो सकता है। डॉ. तयाल ने चेतावनी देते हुए कहा, “यदि कोई पशु रेबीज़ से संक्रमित हो, तो उसे छूने या संभालने से बचना चाहिए, क्योंकि उसकी लार कटे या खुले घाव के ज़रिये संक्रमण फैला सकती है।” कुल मिलाकर, डॉक्टरों का निष्कर्ष है कि इस मामले में दूध या रायते से रेबीज़ फैलने की आशंका नहीं थी और ग्रामीणों में फैला डर वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित नहीं था।

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