महिलाओं-बच्चों को सुरक्षा देने में नाकाम रही है ठाकरे सरकार

- भाजपा की राष्ट्रीय सचिव का दावा     

महिलाओं-बच्चों को सुरक्षा देने में नाकाम रही है ठाकरे सरकार

महाराष्ट्र के बीड, साकीनाका, परभणी, डोंबिवली सहित राज्य के अनेक स्थानों पर बलात्कार और महिलाओं पर अत्याचार की घटना घटित होने पर भी राज्य में निर्भया का आक्रोश सरकार के कानों पर पड़ा नही है। महिला सुरक्षा के विषय पर आघाडी सरकार की बेफिक्री और निष्क्रियता चिढ़ पैदा करनेवाली है। अब महिलाओं को स्वयं की सुरक्षा के लिए कानून हाथ में लेना चाहिए क्या या घर में बैठी सरकार की तरह उन्हें भी घर में ही बैठना चाहिए ? यह सवाल भाजपा की राष्ट्रीय सचिव और राज्य महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष विजया रहाटकर ने पूछा है।  उन्होंने कहा कि महिलाओं की सुरक्षा करने में असफल आघाडी सरकार को सत्ता में रहने का कोई अधिकार नहीं है, ऐसी धारदार तख्त टिप्पणी उन्होंने की।

भाजपा प्रदेश कार्यालय में पत्रकार परिषद में उन्होंने कहा कि, इस सरकार के दो सालों में महिला सुरक्षा के संदर्भ में महिलाओं को केवल घोर निराशा और धोखाधड़ी हाथ लगी है। जिन शिवराय ने कल्याण के सूबेदार की बहू को साड़ी चोली देकर सम्मान से घर भेजवाया, उन्हीं छत्रपति की साक्षी समय समय पर देनेवाले उद्धव ठाकरे के मंत्रिमंडल के सदस्य प्रतिदिन महिलाओं का अपमान करते हुए दिखाई दे रहे हैं। महिलाओं की सुरक्षा के लिए तत्कालीन गृहमंत्री ने 2019 के शीतकालीन अधिवेशन में शक्ति कानून लाने की घोषणा की थी, जो अभी तक लागू हुआ ही नहीं है।

महिला अत्याचार के सवाल पर चारों ओर से आवाज उठने पर लगभग डेढ़ साल के बाद आखिरकार सरकार ने महिला आयोग के अध्यक्ष पद पर नियुक्ति मुहूर्त अक्टूबर 2021 को मिला। बढ़ते अत्याचार के विरोध में आंदोलन हो अथवा भाजपा के 12 महिला विधायकों द्वारा मुख्यमंत्री को लिखा पत्र हो हर बार भाजपा द्वारा धक्का देने पर सरकार की गाड़ी चलेगी ऐसी राज्य की परिस्थिति हो गई है।

मोदी सरकार की ओर से महिला सशक्तिकरण के लिए अनेक कल्याणकारी योजनाएं क्रियान्वित की जा रही है साथ ही महिलाओं पर बढ़ते अत्याचार की घटनाओं की पृष्ठभूमि पर महिला अत्याचार को रोकने के लिए 2020 में नई नियमावली को घोषित किया गया। जिसके अनुसार महिलाओं पर अत्याचार की एफआइआर को दर्ज करने में टालमटोल करनेवाले पुलिस अधिकारियों पर कार्यवाही और बलात्कार की जांच को दो महीने में पूरा करना अनिवार्य किया गया है। केवल महाराष्ट्र में ही एफआइआर दर्ज करने में ढिलाई, पीड़िता का जवाब दर्ज करने में टालमटोल हो रहा है।

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