कब बुझेगी एसटी कर्मियों में लगी आर्थिक संकट की आग

कब बुझेगी एसटी कर्मियों में लगी आर्थिक संकट की आग

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श्रीरामपुर। अहमदनगर का एसटी बस वाहक अंबादास गोयेकर इसलिए हताश है कि उसे दो महीने से वेतन नहीं मिला था, इस महीने जब मिला, तो महज 9800 रुपए। यह धनराशि उसकी मां की कोरोना-संक्रमित मां के इलाज के लिए पर्याप्त नहीं है। उसे अभी तक अगस्त का वेतन नहीं मिला है, इसलिए घर-गृहस्थी के गुजारे के लिए हम में से कइयों ने कर्ज ले रखा है, बताते हुए गोयेकर सवाल उठाता है कि हम एसटी कर्मियों में लगी यह आर्थिक संकट की आग आखिर  कब बुझेगी ? क्या एक लाख कर्मचारियों की आत्महत्या को रोका जा सकता है ?

जान गवांने के बाद चेती ठाकरे सरकार: बीते साल एसटी के दो कर्मचारियों ने आत्महत्या कर ली थी। एक इनमें रत्नागिरी का बस ड्राइवर था और दूसरा था जलगांव का कंडक्टर। उनकी आत्महत्या के बाद राज्य सरकार चेती थी और तब जाकर उसने कर्मचारियों के वेतन का भुगतान करने के लिए 1,000 करोड़ रुपये की पेशकश की थी। इस साल भी धुलिया में एक एसटी बस चालक के आत्महत्या करने के बाद सरकार के होश ठिकाने आए हैं और कर्मचारियों के जुलाई और अगस्त माह के वेतन के लिए 500 करोड़ रुपये का भुगतान किया है।
90 % कर्मचारी हैं कर्जदार: एसटी बस चालक सुरेश पाटिल के मुताबिक इस समस्या के अब स्थायी समाधान की जरूरत है, जिससे हमारी सैलरी हर महीने हमारे बैंक खाते में आ  जाए। गोयेकर ने इसके लिए एसटी महामंडल के राज्य सरकार में विलय का सुझाव दिया है। कर्जत में उनका घर है, जिसके लिए उन्होंने एक बैंक से कर्ज लिया हुआहै। यही स्थिति कई कर्मियों की है। कोरोनाकाल में भी विलंब से हुए वेतन के भुगतान के कारण 90 प्रतिशत कर्मचारियों को अपना घर चलाने के लिए कर्ज लेना पड़ा।
कोरोना में गवांई 84 कर्मियों ने जान: महाराष्ट्र एसटी कर्मचारी कांग्रेस के श्रीरंग बर्गे ने बताया है कि वेतन देने के लिए महामंडल को औसतन 300 करोड़ रुपये की जरूरत है। आर्थिक स्थिति बेहद खराब है। सरकार से कर्मचारियों के वेतन का भुगतान करने को कहा गया है। जब एसटी ड्राइवरों-कंडक्टरों ने कोरोना के संकटकाल में अपनी जान की परवाह किए बिना सेवा की, तो क्या उन्हें उनका वेतन समय पर नहीं मिलना चाहिए ?  84 कर्मचारियों की इस दरमियान जान चली गई; हालांकि उन्होंने लाखों की सेवा की।

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