परमबीर सिंह के खिलाफ एफआईआर पर अदालत ने उठाए सवाल
मुंबई। राज्य के तत्कालीन गृहमंत्री अनिल देशमुख के भ्रष्टाचार की कलई खोलने वाले मुंबई पुलिस के पूर्व आयुक्त परमबीर सिंह को परेशान करने के लिए राज्य सरकार उनके अधिनस्थ रहे अधिकारियों का किस तरह इस्तेमाल कर रही है, इसका खुलासा गुरुवार को बांबे हाईकोर्ट में हुआ।सिंह के खिलाफ अकोला में उनके मातहत कार्य कर चुके एक पुलिस इंस्पेक्टर द्वारा दर्ज कराई गई एफआईआर को सिंह ने हाईकोर्ट ने चुनौती दी है। इस दौरान खंडपीठ ने 6 साल बाद जाति को लेकर उत्पीड़ित करने की शिकायत दर्ज कराए जाने पर सवाल उठाए। सिंह की याचिका में मुख्य रूप से अकोला में तैनात पुलिस निरीक्षक द्वारा दर्ज की गई एफआईआर को चुनौती दी गई है। गुरुवार को न्यायमूर्ति पी बी वैराले न्यायमूर्ति एनआर बोरकर की खंडपीठ के सामने यह याचिका सुनवाई के लिए आयी। इस दौरान राज्य सरकार की ओर से पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता डेरियस खम्बाटा ने कहा कि सिंह पर इस मामले में गंभीर आरोप है।
जिसमें भ्रष्टाचार का भी आरोप शामिल है।लेकिन पहले पुलिस उनकी याचिका पर हलफनामा दायर करेंगी। तब तक यानी 20 मई 2021 तक पुलिस सिंह को गिरफ्तार नहीं करेंगी। इससे पहले खंडपीठ ने कहा कि मामले को लेकर जो एफआईआर दर्ज की गई है वह घटना साल 2015 में घटी है। और शिकायतकर्ता को शिकायत दर्ज कराने में पांच साल क्यों लग गए। वहीं सिंह की ओर से पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता महेश जेठमलानी ने कहा कि मेरे मुवक्किल के खिलाफ गलत इरादे से एफआईआर दर्ज की गई है। पुलिस ने अपने अधिकारों का दुरुपयोग किया है। यह आधारहीन एफआईआर है। इसलिए मेरे मुवक्किल को अंतरिम राहत प्रदान की जाए। फिलहाल अकोला में तैनात पुलिस निरीक्षक भीमराव घाडगे ने सिंह के खिलाफ एट्रोसिटी की शिकायत दर्ज कराई है। अकोला पुलिस ने इस मामले में जीरो एफआईआर दर्ज की है। घाडगे ने उस समय की घटना को लेकर एफआईआर दर्ज कराई है जब वे ठाणे पुलिस आयुक्तालय में तैनात थे और परमवीर सिंह ठाणे पुलिस आयुक्त थे।