ताजा समझौते के तहत पाकिस्तान को 7 अरब डॉलर का एक्सटेंडेड फंड फैसिलिटी (ईएफएफ) पैकेज 37 महीनों के लिए मिला है, साथ ही 1.4 अरब डॉलर का रेज़िलिएंस एंड सस्टेनेबिलिटी फंड (आरएसएफ) भी शामिल है। अक्टूबर में हुए स्टाफ-लेवल एग्रीमेंट के अनुसार, पाकिस्तान को ईएफएफ के तहत 1 अरब डॉलर और आरएसएफ के तहत 20 करोड़ डॉलर मिलेंगे। इस तरह दोनों व्यवस्थाओं के तहत अब तक कुल 3.3 अरब डॉलर का वितरण हो चुका है।
एशियन लाइट अखबार में प्रकाशित एक लेख के अनुसार, यह वित्तीय मदद अस्थायी राहत जरूर देती है, लेकिन यह पाकिस्तान की बाहरी बेलआउट पर बढ़ती निर्भरता को भी उजागर करती है।
आईएमएफ का काम घरेलू नीतियों का सूक्ष्म प्रबंधन करना नहीं, बल्कि राजकोषीय घाटा कम करना, राजस्व बढ़ाना और सब्सिडी को तर्कसंगत बनाना है। इसके बावजूद, पाकिस्तान की सरकारें राजनीतिक रूप से सुविधाजनक लेकिन सामाजिक रूप से प्रतिगामी फैसले लेती रही हैं।
नवंबर 2025 में जारी आईएमएफ की एक रिपोर्ट में पाकिस्तान में भ्रष्टाचार की लगातार बनी हुई समस्या को रेखांकित करते हुए पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाने के लिए 15-सूत्रीय सुधार एजेंडा तुरंत लागू करने की मांग की गई थी। आईएमएफ की गवर्नेंस एंड करप्शन डायग्नोस्टिक असेसमेंट रिपोर्ट में कहा गया कि पाकिस्तान का बजट विश्वसनीय नहीं है। कई परियोजनाओं को स्वीकृति मिलने के बावजूद उन्हें पूरे कार्यकाल में पर्याप्त धन नहीं मिल पाता, जिससे देरी और लागत में भारी वृद्धि होती है।
वर्ष 2024-25 में पाकिस्तान की नेशनल असेंबली ने 9.4 ट्रिलियन रुपये के अतिरिक्त खर्च को मंजूरी दी, जो पिछले वर्ष की तुलना में पांच गुना अधिक है। सांसदों के प्रत्यक्ष नियंत्रण वाले निर्वाचन क्षेत्र विकास कोष भी पूंजी निवेश को प्रभावित करते हैं और निगरानी को कमजोर बनाते हैं, जिससे सार्वजनिक संसाधनों के दुरुपयोग की आशंका बढ़ जाती है।
आईएमएफ भले ही वित्तीय अनुशासन पर जोर देता हो, लेकिन असली समस्या पाकिस्तान के शासक वर्ग की राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी है। सरकारी संस्थानों के विलासितापूर्ण खर्च जारी हैं, सब्सिडी का गलत दिशा में इस्तेमाल हो रहा है और अभिजात वर्ग के विशेषाधिकार बने हुए हैं। वहीं पेंशनरों को कटौती झेलनी पड़ रही है और गरीब उपभोक्ताओं पर गैस के फिक्स्ड चार्ज का बोझ डाला जा रहा है।
ऊर्जा क्षेत्र में यह असमानता साफ दिखती है। खपत आधारित बिलिंग के बजाय फिक्स्ड चार्ज लागू किए गए हैं, जिससे कम आय वाले परिवारों पर बेमेल असर पड़ता है। आईएमएफ लागत वसूली की बात करता है, लेकिन प्रगतिशील टैरिफ और लाइफलाइन स्लैब लागू करना पूरी तरह पाकिस्तान सरकार के हाथ में है।
आईएमएफ और पेरिस स्थित फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) दोनों ने डेटा आधारित सुरक्षा उपायों, भ्रष्टाचार-रोधी दिशानिर्देशों और उचित जांच की जरूरत पर जोर दिया है, लेकिन इन सिफारिशों को लागू करने में प्रगति बेहद धीमी रही है।
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