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Tuesday, November 26, 2024
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लोकसभा चुनाव 2024: कैसरगंज का सियासी अखाड़ा, ​भाजपा​ के दांव से बड़े-बड़ों के उड़े होश​ ​!

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उत्तर प्रदेश की सबसे चर्चित लोकसभा सीट कैसरगंज संसदीय क्षेत्र की अपनी खास पहचान है। इस बार इस सीट ने सभी पार्टियों के लिए राजनीतिक चक्रव्यूह में घिरे सियासी अखाड़े में हर पल रोमांच बढ़ता जा रहा है।कैसरगंज संसदीय क्षेत्र पर जितने मुंह उतनी बातें सुनने भी सुनने को मिल रही हैं।फिलहाल पार्टियों की ओर से मंथन के सिवाय कोई संकेत मिलते नहीं दिखा। कैसरगंज संसदीय क्षेत्र में जो भी हालात हैं, वह भाजपा के दांव से ही बने हैं।भाजपा ने जिस कदर सांसें रोक रखी हैं, उससे बड़े -बड़ों के होश उड़े हुए हैं। पार्टी के अंदरखाने क्या चल रहा है,यह चर्चा का विषय बना है।

दूसरे पार्टियोंकी निगाहें ​इस पर जरूर टिकी हैं कि भाजपा की अगली चाल क्या होगी? लेकिन वह भी सटीक खबर से बेखबर हैं। सपा को तो पुराने दांव की उम्मीद है।यही कारण है कि उसने रण में मोर्चेबंदी तक शुरू कर दी है। यह अलग बात है कि दल से जुड़े तीन स्थानीय नेताओं और एक बाहरी संभावित दावेदार ने नामांकन पत्र भी ले लिया है। इसके​ बावजूद नामांकन में सभी के कदम डगमगा रहे हैं। सपा से पर्चा लेने वाले एक नेता ने कहा कि देरी हो रही है, ऐसे में हर गांव में पहुंच पाना अब असंभव सा है।पार्टी के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि समय बहुत ही कम बचा है। मजबूती के लिए दिन-रात एक करनी पड़ेगी। खैर इन सवालों से तीनों दल बेफिक्र हैं।

कैसरगंज से बसपा के एक नेता ने भी नामांकन पत्र लेकर चौंकाने की कोशिश की है, जिसके कई निहितार्थ तलाशे जा रहे हैं, जबकि भाजपा की ओर से सभी की निगाहें दिल्ली की सूची व हाईकमान से मिलने वाले निर्देश पर टिकी हैं। इसके साथ ही सपा व बसपा ने अब सतर्कता भी बरतनी शुरू कर दी है, ताकि इंदौर और सूरत जैसे हालात न पैदा हो सकें। एहतियातन एक ही नहीं कई नेताओं से पर्चे भरवाने की तैयारी में ये दल मैदान साधने में जुटे हैं।

चुनावी अभियान को धार देने के लिए मंगलवार से दिग्गज के दमखम के ऐलान का असर नहीं दिखा। शोर थमा रहा, माना जा रहा है कि कुछ ऐसा हुआ, जिससे अचानक से सन्नाटा छा गया। कैसरगंज संसदीय क्षेत्र में वैसे भी किसी अन्य दावेदार की कोई दौड़ नहीं थी।सब मौन हैं तो मतदाता भी चुप्पी साधे हैं। देखते हैं कि खेल होता है कि खेल बिगड़ता है। इस सीट के लिए तीन मई तक नामांकन और 20 मई को मतदान। हर दिन समय घटता जा रहा है और मतदाताओं को साधने का दायरा भी सिमटता जा रहा है। इससे रणबांकुरों की धड़कनें तेज होती जा रही हैं। प्रचार- प्रसार का समय 15 दिन ही मिल सकेगा, ऐसे में वह क्या गुल खिला पाएंगे, इसका भी सवाल दावेदारों के जेहन में बार- बार उठ रहा है।

सियासी प्रबंधन के महागुरु के समझ से भी परे​ दिखाई दे रहा है​ भाजपा के देरी का दांव। रणनीति का दावा भी एक समय तक ही ठीक लगा। अब जो देरी हो रही है, उससे कई तरह की गलतफहमियां और कद भी प्रभावित हो रहा है। फिलहाल किससे मन की बात कहूं… सुनने को तैयार कौन है… जैसे गीत एक बार याद आने लगे हैं। हालत यह हो गई है कि सियासी गलियारों के किस्से से आम हो या खास सभी सकते में हैं। हर कोई एक ही चर्चा कर रहा है…अब उनका क्या होगा?
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