नई दिल्ली। हाल ही में पांच राज्यों में करारी हार के बाद कांग्रेस में यह मांग उठने लगी है की हार की जिम्मेदारी तय की जाए।लेकिन क्या ऐसा हो पायेगा यह कह पाना मुश्किल है।असम,पश्चिम बंगाल, पुडुचेरी, तमिलनाडु और केरल में हाल ही में विधानसभा चुनाव हुए जिसमें के टॉप के नेताओं ने धुंआधार प्रचार किया, लेकिन नतीजा शून्य आया। कांग्रेस में हार के कारणों की समीक्षा के लिए एक समिति गठित की है। यह समिति विधानसभा चुनाव में हारने पर जवाबदेही तय किये जाने की सिफारिश कर सकती है।
बता दें कि कांग्रेस ने हार की समीक्षा के लिए पांच सदस्यीय समिति का गठन किया है। अभी समिति को हार की समीक्षा करने में समय लगेगा इसलिए कांग्रेस नेतृत्व समय सीमा बढ़ा सकता है। हार की वजह के लिए बनाई गई पांच सदस्यों की समिति के साथ विचार-विमर्श में नेताओं ने यह मांग रखी। पार्टी के नेताओं का कहना है कि हार के बाद प्रदेश कांग्रेस पर किसी तरह की कोई जिम्मेदारी तय नहीं है। हार के बाद प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष खुद अपना इस्तीफा देने की पेशकश करते है। लेकिन कई बार उनका इस्तीफा मंजूर नहीं किया जाता है।
समिति की चर्चा के साथ पार्टी नेताओं का कहना कि जिम्मेदारी तय की जानी चाहिए और प्रदेश प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं और प्रभारी को एक तय समय तक संगठन में किसी प्रकार का कोई प्रभार नहीं दिया जाना चाहिए। और नए लोगों को इसकी जिम्मेदारी सौपी जानी चाहिए।नेताओं के मुताबिक पार्टी में ऐसा नहीं होता था। पहले यह होता था कि हार वाले राज्य के प्रभारी को किसी दूसरे राज्य का प्रभार सौंप दिया जाता था। वहीं,प्रदेश कांग्रेस कमेटी में भी कोई बदलाव नहीं किया जाता था।
इतना ही नहीं कई नेताओं हार की समीक्षा करने वाली समिति को राय देते हुए आंतरिक कलह पर भी फोकस किया है। नेताओं ने अपने सुझाव में कहा है कि चुनाव में मत खाये प्रभारी और कांग्रेस के वरिष्ठ पदाधिकारियों को एक तय समय तक कोई प्रभार नहीं सौंपा जाना चाहिए। इससे आंतरिक कलह पर लगाम लग सकता है। बता दें कि पंजाब, राजस्थान कांग्रेस में गुटबाजी चरम पर है।इन दोनों राज्यों में आये दिन आपसी टकराव की खबरें सुर्खियां बनती है।