अजित पवार द्वारा एक फिर बगावत किये जाने के बाद सभी की निगाहें महाराष्ट्र की राजनीति पर टिकी हुई है। लगभग सभी विपक्षी दलों ने शरद पवार को फोन कर उनसे बातचीत की है। जिसमें नीतीश कुमार, सोनिया गांधी आदि शामिल है। बहरहाल, सवाल यह उठ रहा है कि क्या एनसीपी में उलटफेर के लिए खुद शरद पवार जिम्मेदार हैं। क्या अचानक अजित पवार ने यह कदम उठाया ? अगर अजित पवार एकनाथ शिंदे और बीजेपी के साथ गए तो इसकी भी वजह तो जरूर होगी। क्या अब शरद पवार अपनी ही जाल में फंस गए।
तो दोस्तों, महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने तीन दिन पहले ही एक निजी टीवी चैनल से बातचीत में 2019 के घटनाक्रम का जिक्र किया था और बताया था कि एनसीपी और बीजेपी की सरकार बनाने से पहले शरद पवार के साथ बैठक हुई थी। इसके बाद अगले दिन शरद पवार ने प्रेस कॉन्फ्रेंस लेकर कहा था कि” मै तो विश्व क्रिकेट संघ का अध्यक्ष रह चुका हूं। क्रिकेट की मुझे समझ है। मैंने एक गुगली फेंकी और उस पर देवेंद्र फडणवीस ने अपनी विकेट दे दी तो, इसमें मेरा क्या दोष ? अब वे यह बताते फिर रहे हैं कि देखो विकेट कैसे गिरा। ”
उसके बाद महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री फडणवीस ने भी उनके बयान पर पलटवार करते हुए कहा था कि ” मै भी गुगली डालूंगा इन्तजार करिये। इसी दिन देवेंद्र फडणवीस का एक और इंटरव्यू सामने आया था। जिसमें यह बता रहे हैं कि 1978 में कांग्रेस की सरकार गिराई गई थी। उस समय वसंतदादा पाटिल मुख्यमंत्री थे। शरद पवार ने 40 विधायकों को अपने पाले में कर मुख्यमंत्री बने थे। तो फिर क्या खुद को शरद पवार गद्दार कहेंगे? रविवार को जब अजित पवार ने एनसीपी से बगावत की तो उन्हें 1978 की अपनी की गई कारगुजारी जरूर याद आई होगी। यही वजह रही कि अजित पवार की बगावत के बाद उन्होंने कहा कि उनके लिए बगावत नई बात नहीं है। तो साफ़ है कि शरद पवार की पार्टी की बुनियाद ही बगावत पर खड़ी है। रही बात यह कि इसके लिए जिम्मेदार कौन है तो, महाराष्ट्र में लगभग चार साल से राजनीति में चल रही उठापटक के लिए अगर कोई जिम्मेदार है तो शरद पवार है।
2019 में उद्धव ठाकरे द्वारा बीजेपी से गठबंधन तोड़ने के बाद शरद पवार ही वह व्यक्ति थे, जो बीजेपी को सत्ता से दूर करने के लिए कांग्रेस,अविभाजित शिवसेना और एनसीपी को साथ लाये। उन्होंने यह तब किया, जब वह बीजेपी के साथ जाने के लिए हामी भर चुके थे, इतना ही नहीं उनके भतीजे अजित पवार ने उप मुख्यमंत्री की शपथ ले ली थी। लेकिन, लगभग माह भर चले राजनीति ड्रामे के बाद माविआ की सरकार बनी। उसके बाद, शरद पवार ने अपने नेताओं को बदजुबानी के लिए नहीं रोका। आये दिन विवादित बयान देते रहे।
माविया ने जिस तरह से महाराष्ट्र में उथल पुथल मचाने में सक्रिय थी। उसी का नतीजा था कि शिवसेना दो गुटों में बंटी और इसके लिए अगर कोई जिम्मेदार है तो संजय राउत और शरद पवार हैं जो,आज लोकतंत्र की दुहाई दे रहे हैं। वैसे 2023 में अजित पवार के बीजेपी के साथ जाने की कई बार खबरें मीडिया की सुर्खियां बनती रही है। इतना ही नहीं, अजित पवार 2022 से लेकर 2023 तक कई ऐसे मौके पर बीजेपी के पक्ष में बयान देते रहे हैं। जो यह साफ़ दिखाता है कि अजित पवार पहले से बीजेपी में जाने की प्लानिंग कर रहे थे।
वहीं, शरद पवार ने हाल ही में जिस तरह से अजित पवार को सुप्रिया सुले को कार्यकारी अध्यक्ष बनाया। यह अजित पवार को सबसे बड़ा धक्का था। जिससे अजित पवार पार्टी में अलग थलग पड़ गए थे। यह वजह अजित पवार के बगावत का कारण हो सकता है। इसमें एक कारण ईडी सीबीआई की कार्रवाई भी हो सकती है। क्योंकि पिछले दिनों पीएम मोदी ने भोपाल में एनसीपी के भ्रष्टाचार को लेकर हमला बोला था।
वैसे अजित पवार ने यह कदम अचानक नहीं उठाया है। बल्कि बड़ी सोच समझकर निर्णय लिया है। इसके नमूना एनसीपी के वरिष्ठ नेताओं का बीजेपी के साथ जाना है। अजित पवार के साथ जाने वालों,छगन भुजबल, प्रफुल्ल पटेल, धनंजय मुंडे सहित कुल नौ नेता हैं। वैसे यह भी कहा जा रहा है कि यह शरद पवार की पटकथा है ,लेकिन इस बात में उतना दम नहीं दिख रहा है जितना होना चाहिए। खुद शरद पवार ने इसका खंडन किया है। लेकिन क्या शरद पवार की बातों पर विश्वास किया जा सकता है,क्योकि शरद पवार का हमेशा दोहरा चरित्र देखने को मिला है। एकनाथ शिंदे और बीजेपी के साथ जाने पर एनसीपी नेताओं ने कहा कि वे महाराष्ट्र के विकास के लिए यह कदम उठाया। लेकिन, क्या यह विकास के लिए उठाया गया कदम है। या सत्ता की भूख है या बात कुछ और है ,यह तो आने वाला समय बताएगा। वैसे बात, ईडी सीबीआई का डर ही है।
वैसे, राज ठाकरे ने अजित पवार के इस तरह शिंदे में जाने के बाद सवाल उठाते हुए कहा है कि “ऐसा हो नहीं सकता कि इस संबंध में शरद पवार को कोई जानकारी न हो” यह कहना मुश्किल है। क्योंकि एनसीपी को छोडने वालों बड़े नेता है। उन्होंने कहा कि सुप्रिया सुले केंद्र में मंत्री बनाई जाएंगी।
सबसे बड़ा सवाल यह है कि जो नेता अजित पवार के साथ गए हैं उन पर भ्रष्टाचार के आरोप हैं। प्रफुल्ल पटेल का अजित पवार के साथ जाना अपने आप में आश्चर्यजनक। क्योंकि प्रफुल्ल पटेल एनसीपी में कार्यकारी अध्य्क्षय थे। फिर उन्होंने शिंदे सरकार के साथ क्यों गए ? यह बड़ा सवाल खड़ा कर रहा है। अगर छगन भुजबल की बात करें तो उन्हें पार्टी में पद की चाह थी। वैसे शरद पवार ने बीजेपी पर आरोप लगाते हुए कहा कि यह विपक्ष को खत्म करने की कोशिश है। उन्होंने भ्र्ष्टाचार पर बात नहीं की।
ऐसे में यह भी सवाल उठ रहा है कि आखिर इस तोड़फोड़ का आगे क्या परिणाम निकलने वाला है। क्या एनसीपी में भी वही लड़ाई होने वाली है जो उद्धव ठाकरे और शिंदे गुट की शिवसेना में चल रहा है। अब लड़ाई पार्टी निशान और वजूद को लेकर है। बताया जा रहा है कि अजित पवार ने 5 जुलाई को एनसीपी की बैठक बुलाई है। तो क्या शरद पवार अपनी “पावर” खो चुके हैं ? क्या शिवसेना की तरह ही एनसीपी का भी हश्र होगा ? क्या शिंदे सरकार में अजित पवार के आ जाने से सरकार पर कोई असर पड़ेगा। क्या उनका वे एनसीपी में नई जान फूंक पाएंगे। क्या माविआ का वजूद खत्म हो गया? इन तमाम सवालों का जवाब आने वाला समय मिलेगा। फिलहाल तो शरद पवार एक्शन में दिख रहे हैं। वे पार्टी अजित पवार के समर्थकों पर कार्रवाई शुरू कर दी है।
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