असम सरकार ने राज्य में मुस्लिम विवाह और तलाक के पंजीकरण को अनिवार्य बनाने के लिए विधानसभा में एक विधेयक पेश किया।असम सरकार द्वारा इस बिल को विधानसभा में पेश किए जाने के बाद विपक्षी दल ने इस पर आपत्ति जताई है| हालाँकि, सरकार ने फिर भी विधेयक सदन में पेश किया। सरकार के फैसले के विरोध में विपक्षी दल ने सदन से वॉकआउट किया|फिलहाल इसे लेकर असम में सियासत गरमा गई है|मुस्लिम विवाह और तलाक के पंजीकरण को अनिवार्य बनाने वाले इस विधेयक को लेकर पिछले कुछ दिनों से सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है|
विपक्षी विधायकों ने जताई आपत्ति: असम विधानसभा अध्यक्ष ने जैसे ही बिल को सदन में पेश करने को कहा तो कांग्रेस विधायकों ने आपत्ति जताई। कांग्रेस विधायकों ने कहा कि हम बिल के खिलाफ नहीं हैं| हालांकि सरकार को इस बिल को सदन में पेश करने से पहले नेताओं से चर्चा करनी चाहिए थी| क्या आपने इस पर चर्चा की? यह सवाल पूछकर नया बिल लाने की मांग किसने की? विपक्षी विधायकों का आरोप है कि कैबिनेट बैठक के फैसले के आधार पर ही यह बिल पेश किया जा रहा है|
असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा की अध्यक्षता में कुछ दिन पहले राज्य कैबिनेट की बैठक में मुस्लिम विवाह और तलाक के पंजीकरण को अनिवार्य बनाने का निर्णय लिया गया। असम कैबिनेट की बैठक में मंजूरी मिलने के बाद इस बिल को विधानसभा में पेश किया गया|
हिमंत बिस्वा सरमा ने क्या कहा?: “असम सरकार द्वारा मुस्लिम विवाह और तलाक के पंजीकरण को अनिवार्य बनाने के लिए पेश किया गया नया विधेयक मुस्लिम निकाह प्रणाली को नहीं बदलेगा। हालांकि, केवल पंजीकरण परिवर्तन ही किए जाएंगे। साथ ही विवाह और तलाक को प्रशासन रजिस्ट्रार के कार्यालय में पंजीकृत किया जाएगा।
आख़िर क्या है ये क़ानून?: मुस्लिम विवाह और तलाक पंजीकरण अधिनियम 1935 में बनाया गया था। इस अधिनियम ने मुस्लिम विवाह और तलाक के पंजीकरण की प्रक्रिया निर्धारित की। साथ ही इस अधिनियम द्वारा राज्य सरकार को किसी भी मुस्लिम व्यक्ति को विवाह या तलाक पंजीकृत करने के लिए लाइसेंस जारी करने का अधिकार दिया गया। इस व्यक्ति को लोक सेवक माना जाता है। इस अधिनियम में वर्ष 2010 में संशोधन किया गया था। इसने मुसलमानों के लिए विवाह या तलाक का पंजीकरण कराना अनिवार्य कर दिया। मूल अधिनियम में यह प्रावधान वैकल्पिक था।
इसलिए केवल वे ही लोग विवाह या तलाक का पंजीकरण करा रहे थे जो चाहते थे। हालांकि, इस अधिनियम से ‘स्वैच्छिक’ शब्द हटा दिया गया था। साथ ही यहां ‘अनिवार्य’ शब्द भी बदल दिया गया| तो अब असम में मुस्लिम विवाह और तलाक का पंजीकरण कराना अनिवार्य होगा।
हिमंत बिस्वा सरमा के बयान पर हंगामा: मंगलवार को विधानसभा में मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा के एक बयान के बाद सदन में हंगामा हो गया| साथ ही मुख्यमंत्री के इस बयान पर विपक्ष ने नाराजगी जताई और मुख्यमंत्री पर पक्षपाती होने का आरोप लगाया| मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा था, ”हां, मैं पक्षपाती हूं। आप क्या कर सकते हैं निचले असम के लोग ऊपरी असम में क्यों जायेंगे? तो क्या मियाँ मुसलमानों ने असम पर कब्ज़ा कर लिया? हम ऐसा नहीं होने देंगे।”
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