अतीक की हत्या पर विपक्ष का घड़ियाली आंसू, जानिये क्या इसके मायने? 

माफिया अतीक अहमद और अशरफ की हत्या के बाद विपक्ष सरकार पर हमलावर है। जिस तरह की बयानबाजी हो रही है ऐसे में सवाल खड़ा हो रहा है कि नेताओं को अतीक की हत्या का दुख है या फिर मुस्लिम समाज के हितैषी बनने की होड़ है।  

अतीक की हत्या पर विपक्ष का घड़ियाली आंसू, जानिये क्या इसके मायने? 

माफिया अतीक अहमद और अशरफ की पुलिस कस्टडी में हत्या के बाद उत्तर प्रदेश की राजनीति भी गरमाई हुई है। कई नेताओं ने बयानबाजी भी की। विपक्ष सरकार पर हमलावर हो गया है। राजनेताओं का कहना है कि पुलिस कस्टडी में हत्या को किसी भी कीमत पर जायज नहीं ठहराया जा सकता है। लेकिन नेताओं द्वारा जिस तरह की बयानबाजी हो रही है ऐसे में सवाल खड़ा होने लगा है कि नेताओं को अतीक के हत्या का दुःख है या फिर मुस्लिम समाज के हितैषी बनने की होड़ है।

 समाजवादी पार्टी के राज्यसभा सदस्य कपिल सिब्बल का कहना है कि उत्तर में जो दो हत्याएं हुई है। यह कानून की हत्या है। अतीक अहमद ने पहले ही अपने जान को खतरा बताया था। पुलिस को सुरक्षा देनी चाहिए। वहीं, समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने ट्वीट कर कहा कि उन्होंने लिखा ” उत्तर प्रदेश में अपराध की हद पार हो गई है। अपराधियों के हौसले बुलंद है। जब पुलिस कस्टडी  में किसी की हत्या की जा सकती है तो आम जनता का क्या ? इस घटना से जनता में डर का वातावरण बन रहा है। कुछ लोग जानबूझकर ऐसा माहौल बना रहे हैं।
 असदुद्दीन ओवैसी ने भी इस घटना को लेकर यूपी की सरकार को घेरा है। उन्होंने ट्वीट किया है कि अतीक अहमद और अशरफ पुलिस की हिरासत में थे, हथकड़ी लगी हुई थी, ये हत्याएं कानून व्यवस्था की नाकामी को बताती है। इस हत्या के लिए एनकाउंटर राज का जश्न मनाने वाले जिम्मेदार हैं। वहीं, बसपा सांसद कुंवर दानिश अली ने ट्वीट किया कि  यह ऊपर के इशारे के बिना संभव नहीं हो सकता। लोकतंत्र में कानून के शासन के खिलाफ ऐसी घटनाओं के लिए राज्य सरकार को बर्खास्त किया जाता है। मायावती ने भी इस घटना की निंदा की है।
ऐसे में माना जा रहा है कि राज्य सरकार पर सवाल उठाते हुए मुस्लिमों का हितैषी बनने की होड़ लगी हुई है। इसकी वजह है निकाय चुनाव है। जिसका हाल ही में  ऐलान किया जा चुका है। गौरतलब है कि यूपी के 24 जिलों में 20 फीसदी मुस्लिम हैं। इनमें 12 जिले ऐसे हैं जहां 35 से लेकर 52 प्रतिशत तक मुस्लिम आबादी है। पिछले चुनाव में बीजेपी ने निकाय चुनाव में 980 पार्षदों की तुलना में पार्टी ने 844 पर ही चुनाव लड़ा था। क्योंकि बाकी वार्ड  मुस्लिम बाहुल्य थे।लेकिन इस साल बीजेपी सभी वार्डो में चुनाव लड़ेगी।
दरअसल, इसी साल मार्च में एक सर्वे में कहा गया था कि 2017 के विधानसभा चुनाव के मुकाबले  बीजेपी मुस्लिम वोटर्स को लेकर मजबूत स्थिति में है। इस सर्वे में कहा गया है कि मुस्लिम वोटर बीजेपी का समर्थन कर सकते हैं। इस सर्वे के सामने आने के बाद विपक्ष और हमलावर हो गया है। 2017 विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव को 26 प्रतिशत मुस्लिमों ने  वोट दिया था। अतीक जैसे क्रिमिनल का विपक्ष समर्थन कर विपक्ष एक तरह से गलत परम्परा की नींव दाल डाल रही है। माना जा रहा है कि विपक्ष के ऐसे बयानों से मुस्लिम वोट का ध्रुवीकरण होगा।
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