बिहार में इन दिनों सोशल मीडिया की अफवाहों पर केंद्रित होकर मीडिया का एक हिस्सा यह भी बता रहा है कि सीएम नीतीश कुमार ने भाजपा से अपनी पार्टी जेडीयू को बचाने के लिए अपने बेटे को राजनीति में उतारने की तैयारी की है। नीतीश कुमार के इस फैसले से बिहार की सियासी सरगर्मियां तेज हो गयी है|साथ अटकलों और कयासों का दौर भी चालू हो गया है|
बता दें कि नीतीश कुमार राज्य में भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति के कारण भाजपा में वापस लौटे। दूसरी बार भी घर में मनमुटाव पर ही निकले और वहां जब संभावना नहीं नजर आई तो लौट गए। अब मनमुटाव की आशंका इसलिए कम हो गई है, क्योंकि सीएम नीतीश कुमार ने महत्वाकांक्षा का त्याग कर दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समक्ष सहज हो गए हैं। भाजपा को बड़ा भाई मानने में गुरेज नहीं करते हैं।
सीएम नीतीश कुमार राजनीति में यह जानते हैं कि जो कमजोर होता है, उसे टूट का सामना करना पड़ता है। इसलिए, अपनी पार्टी को कमजोर नहीं होने देने पर फोकस कर रहे हैं। उन्हें पता है कि भाजपा भी जदयू को तोड़ सकती है, इसलिए वह अपनी छवि की बदौलत राजनीति में टिके रहना चाहते हैं।
बता दें कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार शुरू से परिवारवाद के खिलाफ रहे हैं। परिवार के लोगों को बढ़ावा देने के कारण लालू प्रसाद यादव को भी टारगेट करते रहे हैं। जातीय जनगणना की शुरुआत के समय अपने मूल घर पर गए, तक बेटे निशांत के साथ दिखे। अपनी मां या पिता या पत्नी के श्राद्ध, पुण्यतिथि या जयंती पर ही बेटे को साथ रखते हैं।
अभी भी सिर्फ एक बार नीतीश कुमार के बेटे निशांत ने ऐसे ही एक कार्यक्रम में एक लाइन बोल दिया कि उनके पिता राज्य की सेवा कर रहे हैं और इस बार भी जनता मौका दे। इससे ज्यादा कोई बात जमीन पर नहीं। अगर सीधे शब्दों में कहें तो अपने जीते जी शायद ही नीतीश कुमार बेटे को राजनीति में लाएंगे। अगर वह परिवारवाद के खिलाफ चलने के अपने सिद्धांत से समझौता करेंगे तो शायद ही फिर जनता के सामने जाएंगे।
बिहार की राजनीति में परिवारवाद के कई चेहरे हैं और उनमें लालू प्रसाद यादव के अलावा दिवंगत रामविलास पासवान के साथ अब प्रमुख चेहरों में जीतन राम मांझी का भी नाम आता है। दूसरी तरफ नीतीश कुमार ने परिवारवाद के खिलाफ ही राजनीतिक कद हासिल किया है, इसलिए वह तो कभी निशांत को आगे करेंगे नहीं।
वही परिवारवाद की नई परिभाषा में एक बेटे को राजनीति में लाने का रास्ता निकाल रहे हैं ताकि मुख्यमंत्री पर हमला करना आसान हो। दूसरी तरफ सत्ताधारी दलों भाजपा-जदयू के साथ ही एनडीए के केंद्रीय मंत्रियों चिराग पासवान और जीतन राम मांझी ने तो नीतीश कुमार के निर्णय पर सब छोड़ रखा है, क्योंकि मुख्यमंत्री का फैसला सभी को पता है।
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