पीठ ने कहा, ‘राज्य में पहले किए गए संक्षिप्त पुनरीक्षण में दस्तावेजों की संख्या सात थी और एसआईआर में यह 11 है, जो दिखाता है कि यह मतदाता के लिए ठीक या उचित है। हम आपकी दलीलों को समझते हैं कि आधार को स्वीकार न करना ठीक नहीं है, लेकिन दस्तावेजों की अधिक संख्या वास्तव में समावेशात्मक है।’ शीर्ष अदालत ने कहा कि मतदाताओं को सूची में शामिल 11 दस्तावेजों में से कोई एक जमा करना जरूरी था।
याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक सिंघवी ने इस बात से असहमति जताई। उन्होंने कहा कि दस्तावेजों की संख्या भले ही ज्यादा हो, लेकिन उनका कवरेज सबसे कम है। उन्होंने मतदाताओं के पास पासपोर्ट की उपलब्धता का उदाहरण दिया।
पीठ ने कहा कि राज्य में 36 लाख पासपोर्ट धारकों का कवरेज ठीक दिखाई देता है। न्यायमूर्ति बागची ने कहा, ‘अधिकतम कवरेज सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न सरकारी विभागों से फीडबैक लेने के बाद आमतौर पर दस्तावेजों की सूची तैयार की जाती है।’
इससे पहले 12 अगस्त को शीर्ष अदालत ने कहा कि मतदाता सूची में नागरिकों या गैर-नागरिकों को शामिल करना या बाहर करना चुनाव आयोग के अधिकार क्षेत्र में है। कोर्ट ने बिहार में मतदाता सूची के एसआईआर में आधार और मतदाता कार्ड को नागरिकता के प्रमाण के रूप में स्वीकार नहीं करने के अपने रुख को दोहराया।
संसद के अंदर और बाहर चल रहे एसआईआर पर विवाद के बीच चुनाव आयोग ने दावा किया है कि चुनावी राज्य बिहार में कुल 7.9 करोड़ मतदाता आबादी में से लगभग 6.5 करोड़ लोगों को या उनके माता-पिता को 2003 की मतदाता सूची में शामिल होने के लिए कोई दस्तावेज दाखिल करने की आवश्यकता नहीं थी।
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