कांग्रेस पार्टी द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की एक विवादास्पद तस्वीर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर पोस्ट किए जाने के बाद सियासी घमासान तेज हो गया है। इस फोटो में पीएम मोदी का चेहरा, हाथ और पैर ‘गायब’ दिखाए गए हैं और साथ में कैप्शन लिखा गया है— ‘जिम्मेदारी के समय गायब’। भाजपा ने इस पोस्ट को न केवल अपमानजनक बताया, बल्कि सीधे-सीधे इसे पाकिस्तान से जुड़ी साजिश करार दिया।
भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता प्रदीप भंडारी ने कांग्रेस पर तीखा हमला बोलते हुए कहा, “कांग्रेस पार्टी अपने ऑर्डर्स पाकिस्तान से ले रही है। आज कांग्रेस पार्टी पाकिस्तान के आतंकवाद की टूल किट बन चुकी है।” उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि पाकिस्तान के पूर्व मंत्री फवाद चौधरी ने कांग्रेस के पोस्ट पर न सिर्फ कमेंट किया बल्कि उसे रिपोस्ट भी किया, जिससे “कांग्रेस और पाकिस्तान के डीप स्टेट के बीच गहरी साठगांठ” उजागर होती है।
भंडारी ने कांग्रेस नेताओं के पुराने बयानों को भी घसीटते हुए सिद्धारमैया, सैफुद्दीन सोज और जम्मू-कश्मीर कांग्रेस चीफ पर पाकिस्तान को लेकर कथित नरम रुख का हवाला दिया। उन्होंने कहा, “जब कांग्रेस सर्वदलीय बैठक में सरकार के साथ होने की बात करती है, तो उसके नेताओं के ऐसे बयान असली मंशा को उजागर करते हैं।”
भाजपा प्रवक्ता प्रतुल सहदेव ने कांग्रेस के इस पोस्ट को ‘सिर तन से जुदा’ मानसिकता से जोड़ते हुए कहा कि यह न केवल प्रधानमंत्री का अपमान है, बल्कि राष्ट्र की एकता पर हमला है। “यह समय देश के एकजुट होने का है, लेकिन कांग्रेस ओछी राजनीति कर रही है। उन्हें शर्म आनी चाहिए,” उन्होंने कहा।
प्रतुल ने कांग्रेस की कथित दोहरी नीति पर भी सवाल उठाए और संसद के विशेष सत्र की मांग को ‘राजनीतिक स्टंट’ बताया। “केंद्र कार्रवाई करेगा, लेकिन कांग्रेस को हर दिन रुख बदलने की आदत हो गई है। जब मीटिंग हुई तो सरकार के साथ थे, अब कार्रवाई पर सवाल उठा रहे हैं,” उन्होंने जोड़ा।
गौरतलब है कि यह पूरा विवाद तब उभरा जब कांग्रेस ने सोमवार को ‘एक्स’ पर पोस्ट की गई तस्वीर में प्रधानमंत्री को प्रतीकात्मक रूप से गायब दर्शाया था। यह प्रतीकात्मक हमला भाजपा को स्पष्ट रूप से चुभ गया है, और अब मामला केवल डिजिटल कटाक्ष तक सीमित नहीं रहा, बल्कि राष्ट्रीय राजनीति में विचारधारा की जंग का रूप ले चुका है।
भाजपा जहां इसे राष्ट्रविरोधी रुख करार दे रही है, वहीं कांग्रेस इस पोस्ट को सरकार की जवाबदेही से जोड़ने की कोशिश कर रही है। लेकिन सवाल यही है— क्या राजनीतिक व्यंग्य की सीमाएं तय होनी चाहिए या फिर लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की आज़ादी को इसी तरह के उकसावों की छूट मिलती रहनी चाहिए?
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