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Sunday, December 28, 2025
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‘संविधान हत्या दिवस’: भारत के इतिहास का सबसे काला अध्याय पवन कल्याण!

कांग्रेस पर बोला हमला

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आंध्र प्रदेश के उपमुख्यमंत्री और जनसेना पार्टी प्रमुख पवन कल्याण ने 1975 में लगाए गए आपातकाल को भारत के लोकतंत्र का सबसे काला अध्याय बताया है। आपातकाल की 50वीं बरसी पर पवन कल्याण ने इसे महज एक राजनीतिक घटना नहीं, बल्कि संविधान के साथ किया गया विश्वासघात और सत्ता की लालसा का प्रतीक बताया।

बुधवार (25 जून)को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर अपने विचार साझा करते हुए पवन कल्याण ने लिखा, “प्रेस को चुप करा दिया गया, विपक्ष की आवाज को दबा दिया गया और मौलिक अधिकारों को निलंबित कर दिया गया।लोकनायक जयप्रकाश नारायण, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, जॉर्ज फर्नांडिस, मोरारजी देसाई जैसे महान नेताओं को जेल में डाल दिया गया।”

उन्होंने जोर देकर कहा कि आपातकाल के 50 साल पूरे होने पर देशभर में ‘संविधान हत्या दिवस’ मनाया जाना उन लाखों लोगों के बलिदान को याद करने का अवसर है, जिन्होंने लोकतंत्र की रक्षा के लिए संघर्ष किया।

पवन कल्याण ने आगाह किया कि आज भी संविधान को कमजोर करने की कोशिशें हो रही हैं, और देशवासियों को सतर्क रहना चाहिए। “हमें उन नेताओं की कुर्बानी और उन आम नागरिकों की पीड़ा को नहीं भूलना चाहिए जिनकी आवाज को बेरहमी से दबाया गया था,” उन्होंने कहा।

पवन कल्याण के सुर में सुर मिलाते हुए केंद्रीय कोयला और खान मंत्री जी. किशन रेड्डी ने भी आपातकाल को लोकतंत्र पर सबसे बड़ा हमला करार दिया। उन्होंने कहा, “1975 में कांग्रेस द्वारा थोपी गई तानाशाही में लाखों लोगों को जेल में डाला गया, मीडिया को चुप कराया गया और देश को जेलखाना बना दिया गया, सिर्फ एक परिवार की सत्ता बनाए रखने के लिए।”

उन्होंने कहा कि “जो लोग अपनी कुर्सी बचाने के लिए पूरे देश को बंधक बना सकते हैं, उन्हें इतिहास कभी माफ नहीं करेगा। संविधान सबसे ऊपर है और हम इस तरह की तानाशाही को फिर से पनपने नहीं देंगे।”

केंद्रीय गृह राज्य ‘मंत्री बंदी संजय कुमार ने भी तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “यह वह दिन था जब लोकतंत्र को कुचला गया और तानाशाही स्थापित की गई। हमें उन असंख्य लोगों को याद करना चाहिए जिन्होंने देश में संविधान की बहाली के लिए संघर्ष किया।”

आपातकाल की 50वीं वर्षगांठ पर देश की राजनीति एक बार फिर गरमा गई है। जहां सत्तारूढ़ भाजपा और जनसेना इसे ‘संविधान हत्या’ बताते हुए कांग्रेस पर तीखा हमला कर रही हैं, वहीं विपक्षी दलों की ओर से फिलहाल कोई विस्तृत प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है। यह दिन भारत के लोकतांत्रिक इतिहास की यादों को फिर से कुरेद रहा है—और यह याद दिला रहा है कि लोकतंत्र की कीमत कितनी बड़ी होती है।

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