भारत के मुख्य न्यायाधीश धनंजय चंद्रचूड़ ने सोमवार (4 नवंबर) को भारतीय न्यायपालिका की स्वतंत्रता को लेकर बड़ा बयान दिया है।उन्होंने कहा, ”न्यायपालिका की स्वतंत्रता का मतलब हमेशा सरकार के खिलाफ फैसला देना नहीं होता|” वह इंडियन एक्सप्रेस के ‘एक्सप्रेस अड्डा’ नामक एक साक्षात्कार कार्यक्रम में बोल रहे थे।
मुख्य न्यायाधीश ने कहा, ”समाज में कुछ दबाव समूह सक्रिय हैं, जो मीडिया का इस्तेमाल कर अदालतों पर दबाव बनाते हैं और उनसे अपने अनुकूल फैसले लेने की कोशिश करते हैं| मुख्य न्यायाधीश ने अदालतों की निष्पक्षता और पारदर्शिता को समझाते हुए कहा, “परंपरागत रूप से, यह कहा गया है कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता का अर्थ सरकारी हस्तक्षेप से मुक्ति है। लेकिन न्यायिक स्वतंत्रता सिर्फ यहीं तक सीमित नहीं है| इसके कई पहलू हैं”।
धनंजय चंद्रचूड़ ने कहा, ”हमारा समाज अब बदल गया है| मुख्य रूप से सोशल मीडिया के आने के बाद बहुत कुछ बदल गया है। हमारे चारों ओर दबाव समूह हैं, जो अदालतों से अपने पक्ष में निर्णय लेने के लिए तरह-तरह के प्रयास कर रहे हैं।
न्यायपालिका पर दबाव बनाने के लिए लोगों, लोगों के बड़े समूहों का उपयोग किया जाता है। इसके लिए वे इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का भी इस्तेमाल करते हैं| ये दबाव समूह ऐसा माहौल बनाते हैं कि न्यायपालिका तभी स्वतंत्र मानी जाती है, जब अदालतें उनके पक्ष में निर्णय देती हैं। वस्तुतः तभी न्यायपालिका की स्वतंत्रता अक्षुण्ण मानी जायेगी। मेरी एकमात्र आपत्ति यह है कि यदि अदालत उनके अनुकूल फैसला नहीं देती है, तो यह प्रचार किया जाएगा कि न्यायपालिका स्वतंत्र नहीं है।”
“…यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता की मेरी परिभाषा नहीं है”- मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़: स्वतंत्र होने के लिए, एक न्यायाधीश को यह निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र होना चाहिए कि उसे अपनी अंतरात्मा की बात सुननी है या नहीं। इसमें कोई संदेह नहीं है कि न्यायपालिका न्यायाधीशों, कानून और संविधान के विवेक पर चलती है।
कुछ के अनुसार, जब सरकार के विरुद्ध कोई निर्णय दिया जाता है, तो चुनावी बांड योजना रद्द कर दी जाती है, न्यायपालिका स्वतंत्र होती है। हालांकि, यदि अदालत किसी मामले में सरकार के पक्ष में फैसला देती है, तो यह प्रचारित किया जाता है कि न्यायपालिका अब स्वतंत्र नहीं है। लेकिन, यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता की मेरी परिभाषा नहीं है।
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