भाकपा संसदीय दल कार्यालय द्वारा जारी एक पत्र में पी. संदोश कुमार ने कहा कि भारत निर्वाचन आयोग (ईसीआई) आज एक संवैधानिक प्राधिकरण के रूप में कम और भारत के नागरिकों का नाम मिटाने वाली संस्था के रूप में ज्यादा काम कर रहा है, जो लोकतंत्र की रक्षा के जनादेश के साथ विश्वासघात है। ईसीआई का अर्थ है ‘भारत के नागरिकों का नाम मिटाना।’
भाकपा के राज्यसभा नेता पी. संदोश कुमार ने कहा, “चुनावी धोखाधड़ी का स्तर चौंकाने वाला है। एक छोटे से कमरे में पंजीकृत सैकड़ों मतदाताओं से लेकर बिहार और कर्नाटक के ‘हाउस नंबर 0’ मामलों तक, सबूत स्पष्ट हैं।
उन्होंने आगे कहा, “आयोग के दोहरे मापदंड स्पष्ट हैं। जब एक विपक्षी नेता ने कर्नाटक में गड़बड़ी की ओर इशारा किया, तो उनसे शपथ पत्र दाखिल करने को कहा गया, लेकिन जब एक भाजपा नेता ने इसी तरह के दावे किए, तो कोई सबूत नहीं मांगा गया। यह निष्पक्ष आचरण नहीं है; यह सत्तारूढ़ भाजपा के पक्ष में खुला पक्षपात है।”
मतदान सूची को प्रकाशित करने की जो प्रक्रिया नियमित होनी चाहिए थी, उसे भाकपा सहित विपक्षी दलों की याचिकाओं के बाद सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों के माध्यम से लागू करना पड़ा।
केरल के त्रिशूर से कर्नाटक तक, महाराष्ट्र से बिहार तक, भाजपा ही चुनाव आयोग के छल का बचाव कर रही है, जबकि विपक्षी दल बस स्पष्ट और संक्षिप्त जवाब मांग रहे हैं, लेकिन चुनाव आयोग लगातार टालमटोल कर रहा है।
पी. संदोश कुमार ने कहा कि यह याद रखना चाहिए कि ज्ञानेश कुमार पहले मुख्य चुनाव आयुक्त हैं जिन्होंने नियुक्तियों का पूरा नियंत्रण केंद्र सरकार को सौंप दिया था। नतीजा साफ दिख रहा है कि आयोग अब निष्पक्ष रेफरी नहीं रहा, बल्कि भाजपा के हितों को आगे बढ़ाने वाला एक पक्षपाती खिलाड़ी बन गया है।
भाकपा चेतावनी देती है कि अगर समान अवसर सुनिश्चित करने वाला निकाय ही हेरफेर का साधन बन जाता है, तो लोकतंत्र ही खतरे में पड़ जाएगा। पार्टी अनियमितताओं का पूरा खुलासा, हटाए गए नामों की बहाली, और नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों से खिलवाड़ करने वालों की जवाबदेही की मांग करती है।
कांग्रेस करती है संवैधानिक संस्थाओं का अपमान : किरेन रिजिजू!



