इसमें साइबर सुरक्षा से लेकर फॉरेंसिक साइंस की उन्नति समेत कई विषयों पर पैनल डिस्कशन का आयोजन हुआ, जिसमें जीनोम मैपिंग, जिनियोलॉजिकल डाटाबेस निर्माण, एआई व आंत्रप्रेन्योरशिप जैसे मुद्दे प्रमुख रहे।
इसी कड़ी में साइबर क्राइम को लेकर एक्सपर्ट्स ने माना कि चीन-पाकिस्तान जैसे पड़ोसी देशों की ओर से भारत की साइबर सुरक्षा में सेंध लगाने की बढ़ती कोशिशों पर लगाम लगाने की जरूरत है।
एक्सपर्ट्स ने माना कि चीन-पाकिस्तान की ऑफेंसिव स्ट्रैटेजी का सामना करने के लिए भारत को तेजी से सिक्योर डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित करने की जरूरत है। साइबर क्राइम की सबसे अहम कड़ी ‘साइबर किल चेन’ को रक्तबीज बताते हुए उन्होंने कहा कि इसे वैश्विक प्रयासों के जरिए ही तोड़ा जा सकता है।
इस दौरान भारत समेत विश्व के कई मामलों का न केवल उल्लेख किया गया बल्कि, उससे मिलने वाली सीख पर भी चर्चा की गई। बुधवार को पैनल डिस्कशन में हिस्सा लेते हुए महाराष्ट्र के प्रमुख सचिव ब्रजेश सिंह ने साइबर खतरे व पुलिसिंग के वैश्विक परिदृश्य को लेकर चर्चा की।
उन्होंने कहा कि दुनिया में आज छोटा सा परिवर्तन बहुत बड़ा इंपैक्ट ला सकता है। ‘हिज्बुल्ला पेजर अटैक’ इसका उदाहरण है। उन्होंने कहा कि ‘साइबर किल चेन’ रक्तबीज की तरह है। भारत का सबसे बड़े पोर्ट यानी 3 महीने के लिए जीएनपीटी का पोर्ट ऑपरेट नहीं हो पाया एक मालवेयर के कारण। यह ‘साइबर किल चेन’ का उदाहरण था। साइबर क्राइम इंफ्रास्ट्रक्चर को वैश्विक प्रयासों के जरिए ही तोड़ा जा सकता है।
उन्होंने बताया कि लॉकबिट को तोड़ने के लिए 11 देशों की सुरक्षा एजेंसियों को साथ आकर काम करना पड़ा। यानी, साइबर क्राइम पर आकर ट्रेडिशनल पुलिसिंग के मेथड फेल हो जाते हैं। साइबर किल चेन मॉड्यूलर होता है। रेकॉन, वेपनाइजेशन, डिलीवरी और उत्पीड़न समेत 7 स्टेज इसका हिस्सा हैं।
ब्रजेश सिंह ने कहा कि संकट को रीयल टाइम में मैप करना जरूरी है। एक बार खतरा भांपने के बाद सबूतों को चिह्नित कर उन्हें सुरक्षित करने की जरूरत है। साइबर केसेज की चेन ऑफ कस्टडी भी फॉरेंसिक की तरह ही काम करती है।
उन्होंने आरबीआई साइबर सिक्योरिटी फ्रेमवर्क की तारीफ करते हुए जोर देकर कहा कि भारत में डिजिटल सॉवरेनिटी में फोकस करना होगा, इससे केस सॉल्विंग में मदद मिलेगी। हेल्थ डेटा कितना जरूरी है इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि अगर हमें पता होता कि किसी को तपेदिक है तो शायद स्थिति अलग होती। साइबर सिक्योरिटी भी कृषि की तरह है, इसे बाहर से इंपोर्ट नहीं किया जा सकता है, इसे भारत में ही विकसित करना होगा।
ऑस्ट्रेलिया के साइबर एक्सपर्ट रॉबी अब्राहम ने वर्चुअल माध्यम से पैनल डिस्कशन में जुड़कर हैकिंग की बदलती प्रक्रिया के बारे में जानकारी दी। उन्होंने कहा कि पहले प्रोग्रामिंग, स्क्रिप्टिंग, ओएस, नेटवर्किंग प्रोटोकॉल, शेलकोड राइटिंग जैसी तकनीकों का इस्तेमाल होता था।
उनके अनुसार, अब ईमेल व सोशल मीडिया पर रैनसमवेयर और फिशिंगवेयर के जरिए साइबर हमले हो रहे हैं। इसके जरिए ब्राउजिंग डाटा, क्रिप्टो वॉलेट समेत कॉन्फिडेंशियल जानकारियों तक हैकर्स का एक्सेस बढ़ जाता है। अब हैकिंग के बजाए हैकर्स लॉगिंग पर फोकस करते हैं।
ऑस्ट्रेलिया के साइबर एक्सपर्ट शांतनु भट्टाचार्य ने मिक्स्ड डीएनए एनालिसिस की जटिल प्रक्रिया की जानकारी देते हुए कहा कि एडवांस एल्गोरिदम के जरिए पैटर्न रिकग्निशन व एफिशिएंसी को बढ़ावा मिलता है।
सेंटर फॉर डीएनए फिंगरप्रिंटिंग डायग्नॉन्टिक्स (उप्पल) हैदराबाद के स्टाफ साइंटिस्ट व ग्रुप हेड डॉ. मधुसूदन रेड्डी नंदीनेनी ने नेक्स्ट जेनरेशन सीक्वेंसिंग, रैपिड डीएनए टेक्नोलॉजी, मिनिएचर व पोर्टेबल डिवाइस को लेकर जानकारी दी। हैदराबाद के एनएएलएसएआर के प्रोजेक्ट 39 ए के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर ने जोर दिया कि केवल पुलिस लैब में बने मेथड को फॉरेंसिक साइंस न माना जाए।
उन्होंने कहा कि देश के लैब्स की क्षमताओं को बढ़ाने की जरूरत है। जजों और वकीलों को भी फॉरेंसिक एविडेंस के बारे में जानकारी होनी चाहिए, जिससे उन्हें अपना फैसला सुनाने और न्यायिक प्रक्रिया को आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी।
यूपीएसआईएफएस के फाउंडिंग डायरेक्टर जीके गोस्वामी ने कहा कि हमारी कोशिश होनी चाहिए कि चाहें कितने ही दोषी बचें, मगर निर्दोष को सजा नहीं मिलनी चाहिए। हम न्याय के लिए कार्य करते हैं। अगर हमारे साक्ष्य सही हैं तभी हम न्याय दिला सकेंगे। हमें अकाट्य साक्ष्य जुटाने होंगे क्योंकि न्याय तभी हो सकेगा जब निष्पक्षता के साथ कार्य करें।
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