पश्चिम बंगाल में नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) और मतदाता सूची संशोधन (SIR) को लेकर राजनीतिक टकराव चरम पर पहुँच गया है। राज्य के मंत्री और कोलकाता के मेयर फिरहाद हकीम ने मंगलवार (28 अक्तूबर)को भाजपा और चुनाव आयोग को खुली चेतावनी देते हुए कहा, “अगर भाजपा और चुनाव आयोग ने मिलकर CAA थोपने की कोशिश की, तो मैं उनकी टाँगें तोड़ दूँगा।”
हकीम ने आरोप लगाया कि भाजपा राज्य में स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) की प्रक्रिया का इस्तेमाल CAA लागू करने के लिए कर रही है। हकीम ने कहा कि बंगाल में भाजपा द्वारा आयोजित CAA शिविरों का असली मकसद लोगों में डर फैलाना और वोटर लिस्ट से नाम हटाने की तैयारी है।
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पहले ही इस प्रक्रिया को बैकडोर एनआरसी (गुप्त राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर) करार दे चुकी हैं। उन्होंने कहा था कि इससे गरीब और अल्पसंख्यक समुदायों को मताधिकार से वंचित करने की साजिश चल रही है।
मंगलवार(28 अक्तूबर) को कोलकाता में राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारी मनोज अग्रवाल की अध्यक्षता में हुई ऑल पार्टी मीटिंग में जब सभी दलों को वोटर लिस्ट संशोधन की प्रक्रिया पर जानकारी दी जा रही थी, तब माहौल अचानक गरमा गया। तृणमूल कांग्रेस के प्रतिनिधि के रूप में उपस्थित हकीम ने चुनाव आयोग के अधिकारियों से तीखी बहस की और कहा कि “अगर किसी एक भी असली मतदाता का नाम हटाया गया तो तृणमूल इसका कड़ा विरोध करेगी।”
हकीम ने बैठक के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, “हमने साफ कह दिया है कि बंगाल के किसी एक भी असली नागरिक का नाम अगर मतदाता सूची से हटाया गया, तो हम SIR को स्वीकार नहीं करेंगे।”
उन्होंने एक संवेदनशील मुद्दा उठाते हुए 57 वर्षीय प्रदीप कर की आत्महत्या का जिक्र किया, जिन्होंने उत्तरी 24 परगना के पानीहाटी इलाके में फांसी लगाकर जान दी थी और कथित तौर पर SIR प्रक्रिया को अपनी मौत का कारण बताया था। यह घटना अब तृणमूल और भाजपा के बीच तीखे राजनीतिक संघर्ष का केंद्र बन चुकी है।
भाजपा पर CAA के नाम पर डर फैलाने का आरोप लगाते हुए हकीम ने कहा, “जब तक ममता बनर्जी यहाँ हैं, तब तक भाजपा एनआरसी या सीएए बंगाल में लागू नहीं कर सकती।” इस बीच, राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारी मनोज अग्रवाल ने स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा,“किसी भी असली मतदाता का नाम सूची से नहीं हटाया जाएगा। मतदाता सूची पूरी तरह निष्पक्ष और पारदर्शी रहेगी।”
बिहार में इस साल की शुरुआत में लागू की गई SIR प्रक्रिया में करीब 66 लाख नाम हटाए गए थे, जिसके बाद से यह अभ्यास विवादों में है। अब बंगाल में भी यह प्रक्रिया शुरू होने वाली है, और विधानसभा चुनावों से पहले यह नया विवाद राज्य की राजनीति को और गर्म कर रहा है।
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